गणगौर उत्सव की धूम
गणगौर एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीज) को आता है।
गणगौर उत्सव माता पार्वती ओर शिव के मिलन का उत्सव है जिसे वैवाहिक और दाम्पत्य सुख का प्रतीक माना जाता है
गणगौर उत्सव की धूम
घोड़ाडोंगरी । सतपुड़ा अंचल बैतूल जिले में इन दिनों गणगौर उत्सव की धूम है। मारवाड़ी अग्रवाल समाज की नव विवाहिताये अपने विवाह के प्रथम वर्ष में कुंवारी कन्याओं के साथ मिलकर गणगौर पूजन कर रही हैं।
गणगौर उत्सव माता पार्वती ओर शिव के मिलन का उत्सव है जिसे वैवाहिक और दाम्पत्य सुख का प्रतीक माना जाता है। गणगौर हिंदू कैलेंडर के पहले महीने चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में मनाया जाता है।देखे वीडियो
प्रतिदिन सुबह खेड़ापति माता मंदिर में माता रानी को जल अर्पित करने के बाद परंपराओं के अनुसार गीत गाकर अन्य पूजन करती हैं। उसके उपरांत गणगौर माता का पूजन किया जा रहा है ।
जाने गणगौर का महत्व
गणगौर एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीज) को आता है। इस दिन कुँवारी लड़कियाँ एवं विवाहित महिलाएँ शिवजी (इसर जी) और पार्वती जी (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए गीत गाती हैं। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिन्दूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चन्दन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है।
निकलती गणगौर की झाँँकी
गण (शिव) तथा गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुँवारी लड़कियाँ मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलायें चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक,16 दिनों तक चलने वाला त्योहार है -गणगौर। यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा अठारह दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं ,चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है।
गणगौर का पवित्र त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है
गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।
गणगौर त्यौहार की कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को अपना पति मानती थी. जिसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर उनके सामने 15 दिन तक कठोर तपस्या की थी. इसके बाद 16वें दिन भगवान शिव माता पार्वती की निष्ठा और तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी माना. भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को अपनाने के बाद गाजे-बाजे के सात माता पार्वती के परिवार ने भगवान शिव के साथ उनको विदा किया था. राजस्थान में मनाए जाने वाले इस गणगौर के त्यौहार में ईशर को भगवान शिव व गणगौर को माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है।
समापन दिवस
गणगौर पर्व की पूर्व संध्या पर महिलाएं अपनी हथेलियों को मेहंदी से सजाती हैं। त्यौहार के अंतिम दिन पारंपरिक जुलूस के साथ गण और गौरी की मूर्तियों को किसी तालाब या पास की नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।