जगन्नाथ के देश में कोई अनाथ नहीं हो सकता की: शास्त्री पं. श्याम मनावत
आमला। भारत वर्ष के पूर्व में श्री जगन्नाथ जी विराजमान है। पश्चिम में श्री द्वारकानाथ विराजमान है। उत्तर में बद्रीनाथ और दक्षिण में श्री रंगनाथ विराजमान है। परन्तु मध्य बहम स्थान पर श्री गोवर्धन नाथ जी विराजमान है। पाँच नाथ जिस भूमि पर विराजमान हो वह कभी अनाथ हो नहीं सकता।
भगवान बद्रीनाथ तप की मूर्ति है। वे संन्यास आश्रम के प्रतीक भी है। द्वारका नाथ को 108 पत्नीयाँ रहे 1080 पुत्र है। यह गृहत्य आश्रम के प्रतीक है। जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ। श्री जगन्नाथ जी स्पर्य अन्नपूर्ण ओन जगत के पोषक है। श्री रंगनाथ जी जगत के रक्षक है। परन्तु श्री गोवर्धन नाथ जी शरणागत को समस्त आनन से परिपूर्ण कर देते हैं।
ये विचार मानस मर्मत्र पे श्याम जी मनावत ने ग्राम जम्बाड़ी मे आयोजित संगीतमय 7 दिवसीय भागवत कथा के चौथे दिवस कथा मे वाचन किए उक्त जानकारी देते हुए रामकिशोर देशमुख ने बताया की देशमुख परिवार द्वारा आयोजित भागवत में आज गोवर्धन लीला का उत्सव मनाया गया। भगवान श्री श्रीनाथ जी व भगवान सिह विनायक को छप्पन् भोग लगाया गया। भगवान श्री गोवर्धन जी की दिव्य झांकी का दर्शन हुआ।
विद्वान वक्ता पं. मनावत जी ने इतना प्रसंग सुनाकर आहार सिद्धांत को समझाया । आपने कहा कि पूतना वह पात्र हे जो दूध में भी विष मिला देती है। आज हमने भी प्रत्येक अन्न, फल, सबजी, दूध, घी सभी को केमिकल से विषामत कर दिया है। द्वापर में एक पूतना थी आज असंख्या पूतना है जो आहार को अपने निजी स्वार्थ के कारण विषाक्त कर रहे है।