जग चिड़िया रैन बसेरा है , युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली

जग चिड़िया रैन बसेरा है , युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली  . परिवार के अभाव में धर्म प्रकट होता है । आत्मानपूर्वक परिग्रह का त्याग करना म प्रेषक बिल हो जाते हैं , ऐसे बीतरागी निथ दिगम्बर सानुको आर्किक धर्म होता है । परिग्रह के अभाव में धर्म प्रगटता है । जब कोह में आसक्ति होने के कारण ही अपने चैतन्य स्वरूप का बोध नहीं वस्तूगल भाव का त्याग आर्किक धर्म का मूल आधार है । महाभारत में एक महत्वपूर्ण सूत्र लिखा गया है दो की मान्यता संसार में जन्म मरण का कारण है तथा तीन अक्षरों को श्रद्धान जीव की संसार से पर लगाने वाला है । दो और तीन अक्षर हैन मम मम का अर्थ है , कुछ भी मेरा है , यह मान्यता जीव को दुख और संसार की कारण है । न मम का अर्थ है कुछ भी मेरा नहीं , ऐसा श्रद्धान ही जीव को संसार मे पार लगाने वाला है । भौतिक वस्तुओं के संग्रह में मनुष्य इतना मूर्छित होता जा रहा है कि उसके जीवन से प्रेम मानवता , स्नेह आदि गुण नष्ट होते जा रहे हैं । लोग और मोह ऐसे शत्रु हैं जो हृदय में सदगुणी का प्रकाश नहीं होने देते । बाहा पदार्थों की चाह को पूर्ण करने में व्यक्ति परस्पर प्रतिस्पर्धा में उलझ जाता है , अशांत और अलसवस्थित हो रहा है । संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में मोह को समस्त दुःखों का मूल कहा है – मोह सकल व्यथिन्ह कर भूला , तिन्ह पुनि उपजहिं भव शूला , अर्थात् मोह समस्त व्याधियों , दुःखों की जड़ है , इसी से समस्त बलेश पैदा होते हैं । धर्म ही जीव को दुःखों से छुड़ाकर सच्चे सुख में स्थित करता है । संसार में जीव अकेला जन्म लेता है , अकेला मृत्यु को प्राप्त होता है , अकेला ही धर्म करता है और अकेला ही कर्म करता है तथा जैसा जो कुछ भी करता है , उसका परिणाम स्वयं को ही भोगना पड़ता है । धर्म और कर्म में कोई किसी का साथी नहीं होता । परिग्रह की ममता संसार बढ़ाती है , क्योंकि इससे भावों में अशुद्धता रहती है । महान संत श्रीमद जिन तारण स्वामी जी महाराज ने श्री जानसमुच्चयसार जी ग्रन्थ में कहा है धन धान्य आदि संयोग अप ( बादल की ) पटल के समान क्षणभंगुर नाशवान है तथा चैतन्यता से रहित हैं , पाप आदि से यह होते हैं , अपने शुद्ध स्वरूप को स्वीकार करके इनसे ममत्व छोड़ना ही उत्तम आकिंचन्य धर्म है । आकिंचन्य धर्म छुड़वाता , मोह परिग्रह घेरा है न तेरा है न मेरा है , जग चिड़िया रैन बसेरा है । मनुष्य की आंतरिक प्रवृत्तियों के आधार पर हम समग्र मानव समाज को चार प्रकार की वृत्तियों में विभाजित कर सकते हैं । ०१. दानवी वृद्धि का है यह लक्षण जो मेरा है सो मेरा है , जो तेरा है वह भी मेरा है । ०२. मानवी वृत्ति का है यह लक्षण जो तेरा है सो तेरा है , जो मेरा है सो मेरा है ।०३ . देवी वृत्ति का है यह लक्षण जो तेरा है सो तेरा है , जो मेरा है सो भी तेरा है ।०४ . ब्रहा वृत्ति का है यह लक्षण न तेरा है न मेरा है , जग चिड़िया *****************

Get real time updates directly on you device, subscribe now.