अहंकार दीवार है परमात्मा के दर्शन में – युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली
उत्तम मार्दव धर्म अहंकार दीवार है- परमात्मा के दर्शन में . – युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली अभिमान व्यक्ति के पतन का कारण है । माटी जल के संयोग से कोमल मृदु हो जाती है , यही मृदुता मान का अभाव करती है । अहंकार अलंकार नहीं वह केवल अवगुणों का अंधकार देता है । मान कैसा भी हो , तोड़ता है । कोमलता जोड़ती है । उन्नति विनय से मिलती है , यही मोक्ष का द्वार है । गुणवान ही नम्र होते हैं , जिस तरह फलदार टहनी नीचे झुकती है और सभी को मधुरता द्वारा अपना बना लेती है । विनय में कठोरता नहीं होती । राम की मृदुता सर्वत्र पूजी गयी । विनय का वैभव कभी नष्ट नहीं होता । विनय से विद्या , धन , मित्र और सुख मिलता है । अहंकार करना एक प्रकार का मद अर्थात् नशा है , जो मनुष्य को उन्मत्त बनाये रखता है । संयोगी पदार्थों का अहंकार मनुष्य को अज्ञान में डुबा देता है , वह मान में बहरा हो जाता है । अहंकारी व्यक्ति अपने अभिमान अहंकार की पुष्टि , अहं पोषण के लिये क्या – क्या प्रयत्न नहीं करता , अर्थात् जो वह कर सकता है , वह सब करता है और यह भूल जाता है कि संसार में महाराज भरत चक्रवर्ती और अन्य अनेक पुरुषों का मान भी नहीं रह सका । आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने विनय को मोक्ष का द्वार कहा है । अज्ञान से अहंकार का जन्म होता है वह संसार की जड़ है जबकि ज्ञान पूर्वक विनम्रता प्रगट होती है जो मुक्ति का द्वार है । अहंकारी अपने को श्रेष्ठ मानता है इसलिए अहं में चूर होकर वह गुरुजनों की , माता पिता की , धर्म और धर्मायतन की भी विनय नहीं करता । उसे दूसरे के गुण दिखाई नहीं देते । सागर से पानी भरने के लिये व्यक्ति को झुकना ही पड़ेगा । जो व्यक्ति विनम्र होता है , उसी की हृदय रुपी गागर सद्गुणों से भर जाती है । जिस प्रकार तेज हवा तूफान में कठोर खड़े हुए वृक्ष जड़ से उखड़ जाते हैं किन्तु कोमल बेल झुक कर अपनी रक्षा कर लेती है इसी प्रकार अहंकारी का विनाश और विनयवान की सुरक्षा होती है । जिन्होंने विनय पूर्वक विशेष उपलब्धियों को पाया उनके नाम इतिहास में अमर हो गए । एकलव्य , उपमन्यु , अर्जुन आदि इसके प्रमाण हैं । इनके हृदय में विनय गुण असीम था , यह अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित थे , इसलिए इन्हें उपलब्धियाँ हुईं और वे प्रसिद्ध हो गये । जिसके अंतर में गुणवानों के प्रति विनय का भाव नहीं है वह अपने जीवन में सद्गुणों को ग्रहण नहीं कर सकता और अहंकार परमात्मा के दर्शन में बहुत बड़ी दीवार है । आज के समय में अहंकार के कारण ही परिवार और समाज में फूट पैदा हो रही है । सद्गुण व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं , बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए होते हैं चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो विनम्रता आदि सद्गुणों को ग्रहण करना मानवता का प्रतीक है । अनुकूल संयोगों में जीव मान करता है , और प्रतिकूल संयोगों में क्रोधित होता है , असफलता क्रोध और सफलता मान की जननी है , यही कारण है कि असफल व्यक्ति क्रोधी होता है , और सफल व्यक्ति मानी । यद्यपि मान भी क्रोध के समान ही विकार है , जो आत्मा को मलिन करता है । मान मीठा जहर है , जिसे प्राप्त कर मनुष्य प्रसन्नता का अनुभव करता है , परन्तु यह बहुत दुःखदायक है । ……………