मन से कुछ सोचना , वचन से कुछ और कहना तथा शरीर से कुछ और ही करना , इसी कुटिलता को मायाचार कहते हैं राजेश जो बरेली
कच्ची हंडी काठ की चढ़े न दूजी बार .. – युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जो बरेली . छल कपट करना , विश्वास घात करना माया कषाय का लक्षण है । मन , वचन , काय की कुटिल परिणति को मायाचार कहते हैं , यह माया कषाय आर्जव रूप सरलता गुण को आच्छादित किये रहती है । मन से कुछ सोचना , वचन से कुछ और कहना तथा शरीर से कुछ और ही करना , इसी कुटिलता को मायाचार कहते हैं । इसके अभाव होने पर मन वचन काय की जो सरलता प्रगट होती है , वह आर्जव धर्म है । कपट के तट झट खुलते हैं । माया बाहर से स्वच्छ , अंदर से काली रहती है । धन के लिए छल – बल का प्रयोग सरलता को नष्ट करते हैं । जबकि सरल जीवन में धन सम्पदा का अंबार पाया जाता है । मायावी का कोई अपना नहीं होता , वह सभी को संदेह की दृष्टि से देखता है सरलता का विरोधी कुटिलता है , कुटिल विचारों वाले जीव का स्वभाव सहज एवं सरल नहीं होता , वह सोचता कुछ है , बोलता कुछ है , और करता कुछ है । उसके मन , वचन , काय में एक रूपता नहीं होती , वह अपने कार्य की सिद्धि छल – कपट के द्वारा करना चाहता है , किन्तु मायाचार के कारण वह निरन्तर भयभीत भी बना रहता है । मायाचार छल – कपट का भेद खुल जाने पर कोई भी उस व्यक्ति का विश्वास नहीं करता । एक बार मायाचार प्रगट हो जाने पर हमेशा के लिए विश्वास उठ जाता है , छल – कपट करने वाला व्यक्ति दूसरे का कुछ नहीं बिगाड़ सकता , परन्तु स्वयं को ही छलता है और समय आने पर धोखा खाता है । धोखा धड़ी से कभी -कभी और किसी किसी को ही ठगा जा सकता है , हर किसी को नहीं ठगा जा सकता । काठ की हंडी कच्ची होती है और एक ही बार चढ़ती है । लौकिक कार्यों की सिद्धि मायाचार से नहीं बल्कि पूर्व पुण्य के उदय से होती है । यदि हमारा पूर्व पुण्य कर्म का उदय है , तो अनुकूल परिस्थितियाँ मिलेंगी और पाप का उदय है तो प्रतिकूल परिस्थितियाँ बनेंगी । कपटी व्यक्ति हृदय से क्रूरपरिणामी होता है , और वाणी से मधुर बोलता है , ऐसे परिणाम रखने वाला जीव दुर्गति का पात्र बनता है । मायाचारी व्यक्ति अपने अन्तर के पाप को निरन्तर छुपाने का प्रयास करता है और कहीं गुप्त बात का भेद न खुल जाए इस आशंका से भयाक्रान्त बना रहता है । रामचरित मानस में कहा है निर्मल जन मन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र न भावा । जो व्यक्ति मायाचार छल कपट से रहित होता . है , ऐसे निर्मल मन वाला ही परमात्मा को प्राप्त करता है । भगवान महावीर स्वामी ने कहा था कि छल कपट से रहित हृदय ही सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने का अधिकारी है । सरलता धर्म है कुटिलता अधर्म है । कपट रूपी आचरण से मित्रता नष्ट हो जाती है । सज्जनता की पहचान सरलता से होती है , सज्जन पुरुष सरल होते हैं और दुर्जन पुरुष कुटिल होते हैं । संसार में जो जीव जैसे कर्म करता है , उसका परिणाम उसे ही भोगना पड़ता है । जैसी करनी वैसी भरनी यह प्रकृति का नियम है , इसलिए सद्विचार • सद्वचन सक्रिया और सदाचार से सम्पन्न हमारा जीवन होना चाहिए । असत्यता के पैर मजबूत नहीं होते , सत्य की हमेशा विजय होती है , मायावी लोगों को संसार में छलिया , कपटी , ठगिया आदि नामों से पुकारा जाता है । दुर्गुण हमेशा असम्मान के रूप में ही देखे जाते हैं । गुणों की सर्वत्र पूजा होती है , अवगुणों को किसी भी धर्म या सम्प्रदाय में आदरणीय नहीं माना गया गुणों से मनुष्य पूज्य और श्रद्धा का पात्र बन जाता है जबकि दोषों से अपमान का पात्र बनता है । ****