क्रोध ऐसा मनोविकार है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाया हुआ है

माना जाता है कि पर्युषण पर्व से ही जैन समुदाय के लोगों के लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं. इस महापर्व के जरिए जैन धर्म के अनुयायी उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम ब्रह्मचर्य आत्मसाधना करते हैं.करहि क्रोध जिमि धर्महि दूरी क्षमा विश्व धर्म है . – • युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली  .क्रोधोरभावः क्षमा क्रोध के अभाव में उत्तम क्षमा होती है । क्रोध ऐसा मनोविकार है जो प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाया हुआ है । क्रोध आवेश मात्र है । क्रोध क्यों आता है ? कैसे आता है ? और इस पर विजय कैसे हो सकती है ? इन सभी समस्याओं के समाधान उत्तम क्षमा धर्म में निहित हैं । क्षमा को समझने के पहले क्रोध क्या है यह जानना आवश्यक है । हम जैसा चाहते हैं , वैसा सब होता जाये और हम जैसा कहें वैसा ही सब करें , ऐसा मन सबका होता है । किन्तु अपने चाहे और कहे अनुसार जब कार्य नहीं होता तब हमारे मन में जो आवेश आता है यही क्रोध है । क्रोध से कभी किसी का कार्य बनता नहीं है । क्रोध से कार्य बिगड़ते ही हैं । इसलिये विवेकवान मनुष्य को क्रोध पर अंकुश लगाना चाहिये । प्रसिद्ध विचारक कन्फ्यूसियस ने कहा था कि क्रोध जहर है , जो मनुष्य के अंतरंग में आत्म शक्तियों को नष्ट करता है । आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य महाराज ने कहा था कि यह जीव क्रोध की अग्नि में जल रहा है , आत्म अज्ञान इस क्रोध की अग्नि को जलाने में घी और तेल का कार्य कर रहा है , और यह जीव क्रोध रूपी अग्नि का प्रकोप कर धर्म रत्न को दग्ध कर रहा है । हृदय में सद्भावनाओं का स्थान न होने पर , धर्म भावना खो जाने पर और अज्ञानता की परिणति बलवती होने पर क्रोध पैदा होता है । जब क्रोध बदले की भावना में बदल जाता है तब बैर बन जाता है । वस्तुतः क्रोध अचार और वैर मुरब्बा है । क्रोध जीव को धर्म से दूर कर देता है । क्रोध से प्रीति , वात्सल्य गुण नष्ट हो जाते हैं । क्रोध से मित्र भी शत्रु बन जाते हैं । क्रोध के कारण परिवार और समाज अशांत हो जाते हैं । जहाँ कलह और और विरोध होता है वहाँ नरक बन जाता है । जहाँ क्षमा , शांति , विवेक , सहनशीलता आदि गुण होते हैं वहाँ स्वर्ग बन जाता है । जिस प्रकार अग्नि से अग्नि कभी शांत नहीं होती , उसी प्रकार क्रोध से क्रोध कभी शांत नहीं होता । अग्नि जल से शांत होती है , उसी प्रकार क्रोध क्षमा से शांत होता है । जिस प्रकार पानी सभी की प्यास बुझाता है इसी प्रकार क्षमा विश्व के सभी जीवों को सुख प्रदान करती है इसलिये भगवान महावीर स्वामी ने क्षमा को विश्व धर्म कहा है । धर्म किसी अपनी आत्मा जाति , पंथ , मत सम्प्रदाय में नहीं है , धर्म जीवों पर करुणा , दया , क्षमा और परोपकार तथा पहिचान कर अपने आपको क्रोध , मान , माया , लोभ आदि विकारों से मुक्त कर विशुद्ध भावों सहित आत्म स्वरूप की आराधना करने में है । श्री कृष्ण जी ने श्रीमद् भगवद्गीता में क्रोध को दुर्गति का कारण कहा है । क्रोध करने से जीव धर्म से दूर होता जाता है । अपने घर परिवार समाज और देश को अच्छा बनाना है तो क्रोध रूपी विकार पर अंकुश लगाना अनिवार्य है । क्रोध इन्सान को शैतान बना देता है । क्रोध दोस्त को भी दुश्मन बना देता है । क्रोध के बहाव में मत बहो मित्रो , क्रोध गुलशन को भी वीरान बना देता है ।

श्री तारण तरण दिगम्बर जैन चैत्यालय जी में दिनांक 31-08-2022 से बरेली म. प्र. से ब्रह्मचारी श्री राजेश “शास्त्री भैया जी जैन धर्म के दशलक्षण पर्व (पर्युषण पर्व) पर समाज जनों को
मार्गदर्शन देने हेतु पधारे हैं!
पर्युषण पर्व दस दिन के हैं जोकि 09-09-2022 तक हैं

 

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