किसी बात पर पत्नी से चिकचिक हो गयी ! वह बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकला! सोचा कभी इस लड़ाकू औरत से बात नहीं करूँगा। पता नहीं,समझती क्या है खुद को? जब देखो झगड़ा,सुकून से रहने नहीं देती!
नजदीक के चाय के स्टॉल पर पहुँच कर,चाय ऑर्डर की और सामने रखे स्टूल पर बैठ गया!
तभी पीछे से एक आवाज सुनाई दी इतनी सर्दी में घर से बाहर चाय पी रहे हो?
गर्दन घुमा कर देखा तो पीछे के स्टूल पर बैठे एक बुजुर्ग थे।
आप भी तो इतनी सर्दी और इस उम्र में बाहर हैं बाबा…. बुजुर्ग ने मुस्कुरा कर कहा :- मैं निपट अकेला,न कोई गृहस्थी,न साथी,तुम तो शादीशुदा लगते हो बेटा”।
पत्नी घर में जीने नहीं देती बाबा !! हर समय चिकचिक…, बाहर न भटकूँ तो क्या करूँ। जिंदगी नरक बना कर रख दी है।
बुजुर्ग : पत्नी जीने नहीं देती?
बरखुरदार ज़िन्दगी ही पत्नी से होती है।आठ बरस हो गए हमारी पत्नी को गए हुए। जब ज़िंदा थी,कभी कद्र नहीं की,आज कम्बख़्त चली गयी तो भुलाई नहीं जाती,घर काटने को दौडता है। बच्चे अपने अपने काम में मस्त, आलीशान घर,धन-दौलत सब है…, पर उसके बिना कुछ मज़ा नहीं। यूँ ही कभी कहीं,कभी कहीं,भटकता रहता हूँ! कुछ अच्छा नहीं लगता, उसके जाने के बाद पता चला, वह धड़कन थी! मेरे जीवन की ही नहीं, मेरे घर की भी। सब बेजान हो गया है… लेकिन तुम तो समझदार हो बेटा, जाओ !! अपनी जिंदगी खुशी से जी लो। वरना बाद में पछताते रहोगे, मेरी तरह। बुज़ुर्ग की आँखों में दर्द और आंसुओं का समंदर भी।
चाय वाले को पैसे दिए। नज़र भर बुज़ुर्ग को देखा,एक मिनट गंवाए बिना घर की ओर मुड़ गया…
उसे दूर से ही देख लिया था, डबडबाई आँखो से निहार रही पत्नी,चिंतित दरवाजे पर ही ख़डी थी….कहाँ चले गए थे? जैकेट भी नहीं पहना, ठण्ड लग जाएगी तो ?, तुम भी तो “बिना स्वेटर के दरवाजे पर खड़ी हो!” कुछ यूँ, दोनों ने आँखों से,एक दूसरे के प्यार को पढ़ लिया था!
कई बार हम लोग भी अपने जीवन में इसी तरह की गलतियां कर बैठते है। सिर्फ पत्नी ही नही,माँ-बाप,चाचा-ताऊ,भाई
बहिन या अज़ीज़ दोस्तोँ के साथ ऐसा क्रोध कर देते है जो सिर्फ हम को ही नही,उनको भी कष्ट देता है।
छोटा सा जीवन है, कहीं क्षमा करके कहीं क्षमा मांगकर हँस कर गुजार दे।
जिंदगी के सफर मे गुजर जाते है, जो मकाम,वो फिर नही आते।