एक जमाना हुआ करता था इसके बारे में गांव में आज भी कुछ लोग कहते हैं कि जब कोई बच्चा उस घर में पहुंच जाता था और उन्हें पता चलता था की बच्चे को पढ़ाई के लिए स्कूल ड्रेस की दिक्कत है। पढ़ाई के लिए कॉपी पुस्तक बस्ते की कमी है तो ऐसे रोते हुए बच्चे उसे परिवार को समस्या बताने के बाद बिना मांगे उनकी समस्याओं का हल कर दिया जाता था।
किसी गरीब की लड़की की शादी में आर्थिक परेशानियां जैसी समस्या भी हो तो बिना सेठ तक बात पहुंचे सेठानी ही ऐसे लोगों की मदद कर दिया करती थी। यह बातें आज भी कई पुराने लोग करते हैं और कई लोग तो अपने दोस्तों को भी बताते हैं कि उसे जमाने में हमें खुद स्कूल ड्रेस काफी पुस्तक और परिवार में कन्या के विवाह में शादी में मदद जैसे कार्य नगर सेठ और सेठानी के द्वारा किए गए।
अन्य लोगों के लिए यह एक किस्से कहानियां और किवदंतियों के जैसा हो सकता है । लेकिन जानने वाले जानते हैं कि घोड़ाडोंगरी नगर के सेठ नारायण दास अग्रवाल और उनके पुत्र सेठ तुलसीराम अग्रवाल ऐसे ही पुनीत कार्यों के लिए जाने जाते थे। यह बात आज इसलिए कहने में आ गई की। घोड़ाडोंगरी नगर की करीब 70 साल पुराने एक जर्जर भवन की दीवार पर मेरे मित्र रामकुमार मालवी की नजर पहुंची और उन्होंने देखा कि उसे 70 साल पुरानी बिल्डिंग पर एक पत्थर लगा हुआ है। जो यह बता रहा है कि इस प्राथमिक स्कूल भवन को 1957 में घोड़ाडोंगरी नगर के नगर सेठ नारायण दास अग्रवाल द्वारा बनवाया गया था ।
नगर सेठ सेठ ने 1957 में बच्चों की शिक्षा के लिए यह भवन बनाकर। उनकी उस जमाने के सेठ नगर के विकास और शिक्षा के लिए कितनी बढ़िया सोच थी यह परिदृश्य सिद्ध किया है । जिसे प्रमाणित करने की जरूरत नहीं है। 1957 का लगा हुआ पत्थर यह कहानी खुद कह रहा है कि
1957 में भी एक सेठ था जो गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए ऐसी सोच रखता था और उसे जमीन पर सार्थक भी करके दिखाया है जो यह बिल्डिंग खुद कह रही है।
रामकुमार मालवी कहते है – एक स्वर्णिम समय था जब 1956 में घोड़ाडोंगरी के प्राइमरी स्कूल को नई बिल्डिंग नगर के उत्थान को दृष्टिगत रखकर परम् आदरणीय सेठ नारायण दास अग्रवाल जी ने दी थी । आधुनिक सोच , नगर के विकास , एवं नगर की जनता को शिक्षा के लिये सुविधा एवं जनता की सेवा भावना का अभूतपूर्व उदाहरण है।