*गांधी जी के धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक गणतंत्र की हिफाजत का संकल्प लें , माकपा*
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मूलचन्द मेधोनिया पत्रकार भोपाल
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गाडरवारा । जिला नरसिंहपुर
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के जिला सचिव कामरेड जगदीश पटेल ने बताया कि 2अक्टूबर का दिन सबसे बड़ी चुनौती गांधी जी के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य और संविधान बचाने संकल्प लेने का दिन है , दूसरी तरफ सांप्रदायिक ताकतें जिनका स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं रहा उल्टे अंग्रेजों के पैरोकार रहते सरकारी गवाह बनकर स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही देकर फांसी दिलवाने का काम किया गया, जो लोग गांधी के हत्यारे गोडसे को आदर्श मानते हैं और हत्या में शामिल होने के आरोप लगे माफीवीर सावरकर को गांधी के समकक्ष लाने का प्प्रयास कर रहे हैं । और आज गांधी के हत्यारे गांधी प्रतिमा पर रामधुन कर गांधी के विचार सिद्धांतों की हत्या कर आगे बढ़ते हुए ढोंग कर रहे हैं।
गांधी जी भारतीय जनता के अतुलनीय नेता थे उन्होंने तमाम विविधता को समेटते हुए जनता को ब्रिटिश औपनिवेशक शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुट किया जिसमें गरीबों का विशाल समूह और शोषकों पूंजीपतियों भूस्वामी सामंतों को भी गले लगाया।
गांधीजी का भारत के सबसे धनी पूंजीपति में से एक घनश्यामदास बिड़ला के घर क्यों रुकते थे, यह बात जब नहीं तो अब देश को समझने की जरूरत है,जो कि नई दिल्ली के बिड़ला भवन में ही 30जनवरी 1948को एक हिंदू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे की पिस्तौल से निकली गोलियों ने उनकी जान ले ली। आज गांधीजी का अविचल साम्राज्यवाद विरोधी रुख, धर्मनिरपेक्षता पर कायम रहना, छुआछूत के खिलाफ और सामाजिक न्याय के लिए उनके संघर्ष का सिद्धांत संविधान का आधार बना।
1920 के दशक में 3संकल्पनाएं उभरकर सामने आई थी जिसमें 1कांग्रेस से जुड़ी जो स्वतंत्र भारत को धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक गणराज्य के रूप में थी। दूसरी वामपंथ की थी जो पहली संकल्पना के आगे राजनीतिक स्वतंत्रता की कल्पना का विस्तार कर उसमें हर एक व्यक्ति की आर्थिक सामाजिक मुक्ति को शामिल किया जाना चाहिए जो समाजवाद से ही आ सकती है।
इन दोनों के खिलाफ तीसरी संकल्पना थी कि स्वतंत्र भारत का चरित्र उनके निवासियों की धार्मिक संबद्धताओं से तय होना चाहिए। इसमें 2अभिव्यक्ति थीं मुस्लिम लीग जो इस्लामी राज्य की पैरोकार थी दूसरी आर एस एस जो हिंदू राष्ट्र की पैरोकार हैं।
इसमें पहली संकल्पना को देश के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन के साथ ब्रिटिश शासकों की मदद तथा उनके बढ़ावे से कामयाबी मिली।
तीसरी हिंदू राष्ट्र वाली परिकल्पना विफल होने की निराशा ने एक हिंदू कट्टरपंथी द्वारा गांधी जी की हत्या कर दी । भारत के स्वतंत्रता संघर्ष ने आर एस एस की संकल्पना और राजनैतिक परियोजना को ठुकरा दिया।
स्वतंत्रता संघर्ष के प्रतीक हड़पने की कोशिश के तहत सरदार पटेल जिन्होंने देश के गृह मंत्री की हैसियत से 4फरवरी 1948 को आर एस एस पर प्रतिबंध लगाया था, जिन्होंने कई हिंसक घटनाएं, हत्याएं जिसमें सबसे मूल्यवान बलि महात्मा गांधी की ली गई। बीच में गोलवलकर से बातचीत हुई विफल रही, एक बार तो सरदार पटेल ने गोलवलकर की मिलने वाली प्रार्थना को ही ठुकरा दिया और कहा आप नागपुर लौट जाइए। अंत में 11जुलाई 1949को शर्तों के साथ प्रतिबंध हटाया गया।
उस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा का नेतृत्व पूंजीपति वर्ग के साथ सामंती कर रहे थे जिसे अहमदाबाद में कपड़ा मिल मजदूरों की हड़ताल के दौरान मजदूर मालिकों के घर घेर रहे थे गांधी जी आंदोलन रोकने अनशन बैठ गए थे, इसी तरह चौरा चौरी में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थाने पर धावा बोलते हुए आग लगा दी थी गांधीजी ने अपने नागरिक अवज्ञा आंदोलन को वापस ही नहीं लिया उसे हिमालय सी भूल बताया। लोगों ने जेल से गांधीजी को पत्र लिखकर आंदोलन वापिस लेने आपत्ति दर्ज कराई थी।
यहां से जनता में निराशा आने लगी, आंदोलन में शामिल कई धाराएं इस धोखे से अलग होना शुरू कर दिया। इनमें भगतसिंह उनके साथी मुखर तरीके से वामपंथ तथा समाजवाद की ओर बढ़ गए। उधर पी सुंदरैय्या, ई एम एस नंबूदरीपाद, पी राममूर्ति, हरकिशन सिंह सुरजीत सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानी समाजवादी दृष्टि से बढ़ गए और कम्यूनिस्ट नेताओं के शीर्ष नेताओं के रूप में आगे आए।
भारत को आजादी मिली उनका वर्गीय शासन स्थापित हो गया, पूंजीपति शासक वर्ग को गांधीजी का तरीका उनकी रस्ताओं में बाधा डालने लगे इस वर्ग को गांधीजी की जरूरत नहीं थी, अब उनके पास पुलिस और फौज थी पूंजीपति सामंती गठजोड़ के हित कायम रखना था। जिसे 15अगस्त 1947में जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत में लाल किले से तिरंगा झंडा फहराते हुए अन्य नेताओं के साथ आजादी का जश्न मनारहे थे,तब गांधी जी क्यों नहीं थे,
यह बात युवाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
तब गांधीजी तीसरी संकल्पना हिंदू राष्ट्र वाली आर एस के द्वारा विभाजन के बाद बांग्लादेश और कलकत्ता में भूख हड़ताल कर रहे थे कि सांप्रदायिकता के तहत खून खराबे को रोक सकें।
आज भारत में 2019 में एकतरफा सांप्रदायिक ताकतों के आते ही साम्राज्यवादी, लोकतांत्रिक मूल्यों पर खुला हमला शुरू हो गया जो आज ट्रंप टैरिफ के रूप में भयानक तरीके से देशवासियों को तबाह करने बाला है। आज जो संघ संचालित बीजेपी सरकार है इसे हिंदू राष्ट्र के लिए धर्मनिरपेक्षता, और लोकतंत्र पर हमला करते हुए संविधान के खिलाफ मनुवाद की ओर बढ़ रहे हैं।
चंद कॉर्पोरेट का सरेआम हित साधते हुए सार्वजनिक उपक्रमों को कौड़ियों के भाव बेचकर 144करोड़ के सबसे बड़े देश खासकर कृषि प्रधान देश की कृषि को भी कार्पोरेट के हाथों सौंपने की बेशर्मी के साथ कोशिश जारी है,
आज देश को गांधी जी के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य को बचाने के साथ ओर आगे राजनैतिक स्वतंत्रता, आर्थिक ओर सामाजिक मुक्ति की ओर जाना है जो समाजवाद से ही आएगी विकल्प वामपंथ ही है।







