रतनवीर नेचर क्योर इंस्टीट्यूट, भुज (गुजरात) में डॉ. नवीन वागद्रे ने बताया – “स्वास्थ्य का असली रहस्य है प्रकृति के साथ संतुलन”

 

भुज (गुजरात)। रतनवीर नेचर क्योर इंस्टीट्यूट में आयोजित एक विशेष सत्र में प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. नवीन वागद्रे ने नैचुरोपैथी और योग की महत्ता पर विस्तृत जानकारी दी। इस कार्यक्रम में मुंबई,चेन्नई, गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे दूर-दराज़ क्षेत्रों से लोग शामिल हुए।

डॉ. वागद्रे मूल रूप से मध्यप्रदेश के बैतूल जिले, आठनेर तहसील के ग्राम गुजरमाल के निवासी हैं। वे सोशल मीडिया, हेल्थ सेमिनार और पुस्तकों के माध्यम से लगातार लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति जागरूक कर रहे हैं। वर्तमान में वे भुज स्थित रतनवीर नेचर क्योर इंस्टीट्यूट में 2 माह की इंटर्नशिप कर रहे हैं, जिसके बाद वे रायपुर (छत्तीसगढ़) में इंटर्नशिप करेंगे। उनकी लिखी पुस्तक “Seeds – सेहत और जीवन का संगम” भी पाठकों के बीच लोकप्रिय हो चुकी है।

सत्र के दौरान उन्होंने कहा –
👉 “मनुष्य और प्रकृति का संबंध उतना ही गहरा है जितना मछली और पानी का। जब तक मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन जीता है, तब तक वह स्वस्थ और प्रसन्न रहता है। लेकिन कृत्रिम साधन और असंयमित जीवनशैली रोगों को आमंत्रण देती है।”

उन्होंने बताया कि फास्ट फूड, तनाव, प्रदूषण, रसायनयुक्त भोजन और देर रात तक जागना जैसी आदतें आज जीवनशैली-जनित रोगों – मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और कैंसर – का मुख्य कारण बन गई हैं। आधुनिक चिकित्सा केवल लक्षणों को दबाती है, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा रोग की जड़ को पहचानकर शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती है।

डॉ. नवीन ने समझाया कि –

प्राकृतिक चिकित्सा का आधार पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) हैं।

शरीर की “सर्विसिंग” आवश्यक है, जो डिटॉक्स के माध्यम से संभव है।

सप्ताह में एक दिन उपवास/फलाहार, गुनगुना नींबू पानी, मौसमी फल-सब्ज़ियाँ, योग-प्राणायाम और पर्याप्त नींद से शरीर स्वस्थ रह सकता है।

गहराई से डिटॉक्स के लिए नैचुरोपैथी केंद्रों में मिट्टी चिकित्सा, जल चिकित्सा, सूर्य स्नान और ध्यान-योग विशेष लाभकारी हैं।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जंगल के जीव-जंतु शायद ही बीमार पड़ते हैं क्योंकि वे प्रकृति की लय के साथ जीते हैं। हमारे पूर्वज भी प्राकृतिक भोजन और अनुशासित दिनचर्या के कारण लंबा और स्वस्थ जीवन जीते थे।

अंत में डॉ. वागद्रे ने कहा –
“स्वास्थ्य दवा से नहीं, बल्कि प्रकृति के निकट जीवन और अनुशासन से मिलता है। प्राकृतिक चिकित्सा केवल रोगियों के लिए नहीं, बल्कि हर व्यक्ति की जीवनशैली का हिस्सा बननी चाहिए।”