यहाँ दीवाली पर नवरात्रि उत्सव की तरह मनाते है माँ काली उत्सव : क्या होता है जाने

*दीवाली शायद सबसे अधिक पूजनीय भारतीय त्योहारो मे से एक है, देखा जाए तो भारत मे ऐसे कई जगह है जहाँ पर दीवाली को कुछ अलग परम्पराओ के अनुसार मनाया जाता है, आप को यहाँ कुछ अनोखी चीज़ देखने को मिलेगी। इस साल दीवाली 24 अक्टूबर 2022 को है दर असल हम आप को चोपना क्षेत्र मे उन गांव के बारे मे बताने वाले है जहाँ माँ काली की पूजा अलग अलग तरह से की जाती है।

जहाँ गांव शांतिपुर, नूतनडंग, फुलबड़ी, चोपना में दीवाली पर 5 दिन अत्यंत उत्साह के साथ मनाया जाता है वही गांव झोली 2, बादलपुर, कोलिया आदि गांव मे 1 दिवसीय का संस्कृतिक कार्यक्रम डांस, आर्केस्ट्रा मंत्रमुक्ध कर देने वाली डांस नाईट, टेस्टी खाना और माँ काली के खूबसूरती से सजाएं हुए गए मंदिर पर्यटको को बेहद आकर्षित करते है। काफी लोग दीवाली के त्योहार मे लगने वाले मेलो और उत्सव में शामिल होने और घूमने की चाह रखते है। इस के अलावा कुछ लोग माँ काली को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते है।*

*दीवाली की रात माँ काली की पूजा -* *बंगाली परंपरा में दिवाली को कालीपूजा कह कर संबोधित करते हैं। मान्यता हैं माँ काली इसी दिन 64 हज़ार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी और उन्होंने रक्तबीज सहित कई असुरों का संहार किया था, कालीपूजा को शक्तिपूजा भी कहते हैं।* *कार्तिक महीने की अमावस्या की रात कालीपूजा की जाती हैं, माना जाता है कि आधी रात को माँ काली की विधिवत पूजा करने पर मनुष्य के जीवन के संकट, दुख और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती है, शत्रुओं का नशा हो जाता है और जीवन में सुख संमृद्धि आने लगती हैं।*
*मान्यता है कि एक समय चंड – मुंड और शुंभ – निशुंभ आदि दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। उन्होंने इंद्रालोक तक पर अधिक करने के लिए देवताओं से लड़ाई शुरू कर दी। सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना की, भगवान शिव ने माता पार्वती के एक रूप माँ अम्बा को प्रकट किया। माँ अम्बा ने इन राक्षसों का वध करने लिए माँ काली का भयानक रूप धारण किया और सभी राक्षसों का वध किया। तब एक अति शक्तिशाली दैत्य रक्तबीज वह आ पहुंचा। रक्तबीज की यह विशेषता थी की उसकी रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरते ही एक नया राक्षस पैदा हो जाता था, इसलिए उसे रक्तबीज कहा गया।

माँ काली ने अपनी जीव बाहर निकाली और अपनी तलवार से रक्तबीज पर वार किया और उसका रक्त जमीन पर गिरे, उससे पहले ही वे उसे पिने लगी। जब रक्तबीज का रक्त जमीन पर गिरा ही नहीं तो नया दैत्य पैदा ही नहीं हुआ और इस तरह रक्तबीज का वध हुआ लेकिन माँ काली का क्रोध शांत नहीं हुआ वे संहार की ही परवर्ती मे रही, लगा माँ काली अब सारी सृष्टि का संहार कर देगी। भगवान शिव को इस का आभास हुआ तो वे चुपचाप माँ काली के रास्ते में लेट गए। जब माँ काली आगे बढ़ी तो उनका पैर शिवजी की छाती पर पढ़ा,अंततः शिव की छाती पर पैर पड़ते ही माँ काली चौक पड़ी क्योंकि उन्होंने देखा कि यह तो साक्षात भगवान शिव हैं, उनका क्रोध तत्काल शान्त हो गया और उन्होंने संसार के सभी जीवों को आशीर्वाद दिया। माँ काली भगवान शिव के ही अंश है इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा जाता हैं।*
*काली पूजा के लिए माँ काली की नई मूर्ति की स्थापना कर कोई विद्वान पंडित शुद्ध मंत्र और विधि विधान से उनकी पूजा करवाते हैं माँ काली के सामने अखंड दीपक जलता रहता है। दस महाविद्याओं की पूजा के अंतर्गत माँ काली का स्थान आता है, ये दस महाविद्या की देवीयां हैं – माँ काली, माँ तारा, माँ भुवनेश्वरी, माँ बगलामुखी, माँ कमला, माँ छिन्नमस्ता, माँ त्रिपुर सुंदरी, माँ भैरवी, माँ मातंगी और माँ धुयावती इन की विशेषता यह है कि साधक अपनी साधना की चर्चा नहीं करते- हॉ दो साधक आपस मे चर्चा कर लेते है, लेकिन ऐसे साधक किसी अन्य व्यक्ति को इनकी भनक तक नहीं लगने देते क्योंकि उनका मानना है इससे साधना की पवित्रता नष्ट हो जाती हैं, इस लिए इसे गुप्त रखना चाहिए। दस महाविद्या की उपासना का संबंध हमारे मेरुदंड में स्थित सात चक्रों मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार को जागृत करने से भी वह यथासमय सभी चक्रो को खोलती हुई सहस्रार तक पहुचती हैं।**माँ काली को 108 के गुड़हल के फूलो कि माला, गुड़ का प्रसाद अति प्रिय हैं इन्हें श्रद्धाभव के साथ अर्पित की जाती है – कहते है जिन लोगो के मन में किसी बात को लेकर डर समाया हुआ है वह डर निकल नहीं रहा है, उन्हें माँ काली की पूजा करने की सलाह दी जाती है। इसी संदर्भ में कहा जाता है कि माँ काली के रूप को देखकर डरना नहीं चाहिए क्योंकि उन्होंने यह रूप डर (भय) नाम के राक्षस को भागने के लिए धारण किया है।*
*एक मान्यता यह भी है कि माँ काली की मूर्ति अपने घर में नहीं रखना चाहिए अगले दिन इस मूर्ति का नदी या तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है क्योंकि मूर्तिपूजा के कुछ विधान है, जिसे पूरा नहीं करने पर हानि होती हैं, हा फ़ोटो रखा जा सकता है, मुर्तिया सिर्फ मंदिरों में स्थापित होता है जहाँ उनकी विधिवत पूजा होती है।*

*बापी बैन*
*भाजपा मंडल उपाध्यक्ष – चोपना*

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