खेल जगत से लेकर बॉलीवुड तक, कई बार खिलाड़ियों और सेलेब्रिटी के शरीर पर गोल-गोल लाल निशान देखे गए हैं। देखने वालों को यह अक्सर चोट या संक्रमण के निशान लगते हैं, लेकिन डॉक्टर नवीन का कहना है कि ये निशान दरअसल कपिंग थेरेपी के परिणाम होते हैं। यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति अब आधुनिक दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है और दुनिया भर में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
कपिंग थेरेपी की शुरुआत हजारों साल पहले चीन, मिस्र और मध्य-पूर्व देशों से हुई थी। प्राचीन काल में इसे दर्द कम करने, शरीर को डिटॉक्स करने और ऊर्जा संतुलन बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आज भी इसका मूल सिद्धांत वही है—त्वचा पर कप लगाकर सक्शन या वैक्यूम तैयार करना। यह सक्शन त्वचा और मांसपेशियों को ऊपर उठाता है, जिससे उस हिस्से में रक्त संचार बढ़ता है, ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति तेज होती है और हीलिंग प्रक्रिया गति पकड़ती है। कपिंग से लिम्फेटिक सिस्टम भी सक्रिय होता है, जो शरीर से विषैले तत्व और अवशिष्ट पदार्थ बाहर निकालता है। यह प्रक्रिया दर्द नियंत्रित करने वाले रिसेप्टर्स को शांत करती है और मस्तिष्क तक आराम के संकेत पहुंचाती है। यही वजह है कि मरीजों को न केवल शारीरिक दर्द से राहत मिलती है बल्कि तनाव और चिंता भी कम होती है।
कपिंग थेरेपी के कई प्रकार हैं। ड्राई कपिंग में केवल सक्शन किया जाता है और इसे शुरुआती लोगों के लिए सुरक्षित माना जाता है। वेट कपिंग या हिजामा में सक्शन के बाद छोटे-छोटे कट लगाए जाते हैं, जिससे खराब खून और टॉक्सिन बाहर निकलते हैं। इसे सबसे शक्तिशाली डिटॉक्स पद्धति माना जाता है। फायर कपिंग में कप को आग से गर्म कर त्वचा पर लगाया जाता है, जबकि मसाज कपिंग में तेल लगाकर कप को शरीर पर स्लाइड किया जाता है, जिससे मसाज और सक्शन दोनों का लाभ मिलता है।
इस पद्धति के लाभ भी व्यापक बताए जाते हैं। यह पीठ दर्द, गर्दन दर्द, आर्थराइटिस, माइग्रेन, स्पोर्ट्स इंजरी, मांसपेशियों की अकड़न और थकान में राहत देती है। त्वचा संबंधी रोगों में भी यह उपयोगी पाई गई है। इसके अलावा, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पाचन क्रिया को दुरुस्त करने और मानसिक शांति प्रदान करने में भी इसे कारगर माना जा रहा है। यही वजह है कि आज कई खिलाड़ी अपनी रिकवरी रूटीन में कपिंग थेरेपी को शामिल कर चुके हैं और वेलनेस क्लीनिकों में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी भी देते हैं कि यह थेरेपी सभी के लिए सुरक्षित नहीं है। गर्भवती महिलाओं, गंभीर एनीमिया, ब्लड क्लॉटिंग की समस्या, कैंसर और टीबी के रोगियों, हृदय विफलता वाले मरीजों, अत्यधिक कमजोर या बुजुर्ग व्यक्तियों और संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को यह उपचार कराने से बचना चाहिए। गलत तरीके से या अनुभवहीन व्यक्ति द्वारा की गई कपिंग थेरेपी से गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भारत में भी कपिंग थेरेपी की लोकप्रियता हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है। खासकर महानगरों के वेलनेस सेंटर और नेचुरोपैथी क्लीनिकों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर खिलाड़ियों और सेलेब्रिटी द्वारा कपिंग के अनुभव साझा करने के बाद आम लोगों में भी इसके प्रति रुचि बढ़ी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कपिंग थेरेपी आज केवल प्राचीन परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी प्रभावी साबित हो रही है। लेकिन यह तभी सुरक्षित और लाभकारी है जब इसे प्रशिक्षित और प्रमाणित विशेषज्ञ द्वारा किया जाए।







