आज की तेज़-तर्रार ज़िंदगी में खानपान की आदतें हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही हैं। खासकर सूर्यास्त के बाद भोजन करने की प्रवृत्ति पर वैज्ञानिक और पारंपरिक दोनों दृष्टिकोण गंभीर चेतावनी देते हैं।
नवीनतम वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि सूर्यास्त के बाद भोजन करने से हमारे शरीर की सर्केडियन रिदम (body clock) प्रभावित होती है। रात को देर से खाना खाने वाले लोगों में मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग का ख़तरा बढ़ सकताह है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रात में शरीर का मेटाबॉलिज़्म धीमा हो जाता है और इंसुलिन संवेदनशीलता घट जाती है। इसका मतलब है कि रात को खाया गया भोजन सही से पच नहीं पाता और वसा (fat) के रूप में जमा होने लगता है।
आयुर्वेद के अनुसार, भोजन का समय सूर्य की गति से जुड़ा हुआ है। दिन के समय जब सूर्य प्रखर होता है, तब अग्नि (पाचन शक्ति) सबसे अधिक सक्रिय रहती है। इसी कारण कहा गया है कि “सूरज के साथ-साथ भोजन होना चाहिए”। यानी सुबह नाश्ता पर्याप्त और हेल्दी होना चाहिए, दोपहर का भोजन पर्याप्त और सम्पूर्ण आहार होना चाहिए और शाम का भोजन हल्का तथा सूर्यास्त से पहले होना चाहिए। यदि हम रात को भोजन करते हैं तो यह (toxins) बनने का कारण बनता है, जो अनेक रोगों की जड़ है।
इसी तरह, जैन दर्शन में भी रात के भोजन को वर्जित किया गया है। जैन साधु-साध्वी और कई अनुयायी आज भी सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते। इसके पीछे तर्क केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी भी है। रात के समय अंधेरे में सूक्ष्म जीव-जंतु अधिक सक्रिय होते हैं, ऐसे में भोजन करना न केवल जीव हिंसा का कारण माना गया है बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक है।
डॉ. नवीन वागद्रे बताते हैं कि सूर्यास्त से पहले भोजन करना शरीर की जैविक घड़ी (biological clock) के अनुरूप है। इससे न केवल पाचन सुधरता है बल्कि ऊर्जा स्तर, नींद की गुणवत्ता और समग्र स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। आधुनिक विज्ञान, आयुर्वेद और जैन दर्शन—तीनों इस बात पर एकमत हैं कि सूर्यास्त के बाद भोजन से बचना चाहिए और प्रकृति के नियमों के अनुसार दिनचर्या अपनानी चाहिए।







