नगर कीर्तन का जगह-जगह हुआ स्वागत

गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती , प्रकाश पर्व गुरु सिंह सभा घोड़ाडोंगरी द्वारा नगर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। देखे वीडियो

लगभग एक पखवाड़े पूर्व ही यह उत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी। प्रतिदिन सुबह 5 बजे से गुरुद्वारे से प्रभात फेरी ढोल मंजीरों की थाप पर निकाली जाती थी और जगह-जगह स्वागत होता था।

आज शनिवार को नगर कीर्तन स्थानीय गुरुद्वारा से निकाला गया नगर कीर्तन में बड़ी संख्या में लोग शामिल थे । नगर वासियों ने भी जगह-जगह स्वागत किया।

गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु बनें। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि हर साल बदलती रहती है, लेकिन इस अवसर को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है।
प्रकाश पर्व का अर्थ और महत्व
प्रकाश पर्व का अर्थ है- अंधकार को दूर कर सत्य, ईमानदारी, और सेवा का प्रकाश फैलाना। गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी ने समाज में ज्ञान, सत्य, और न्याय का प्रकाश फैलाया। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि जीवन में सत्य और धर्म का पालन करना ही सच्चा प्रकाश है। इस दिन गुरुद्वारों को भव्य तरीके से सजाया जाता है, नगर कीर्तन निकाले जाते हैं, और श्रद्धालु अरदास, भजन-कीर्तन, तथा प्रभात फेरी में शामिल होकर गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और योगदान
गुरु गोबिंद सिंह जी न केवल एक महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि वे एक कुशल योद्धा, कवि, और विचारक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता और आध्यात्मिकता का संचार किया। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में जाप साहिब, अकाल उस्तति, और चंडी दी वार प्रमुख हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना बैसाखी के दिन 1699 में की थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने सिख धर्म को एक नई दिशा और पहचान दी। खालसा पंथ का मुख्य उद्देश्य अन्याय, अत्याचार और अंधकार को समाप्त करना था।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों और उनके अत्याचारियों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं। उन्होंने कभी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया और न ही अपने अनुयायियों को झुकने दिया। उन्होंने सिखों को आत्मसम्मान और निडरता का पाठ पढ़ाया। उनकी प्रसिद्ध वाणी “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह” आज भी हर सिख के हृदय में जोश और आत्मविश्वास का संचार करती है।

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