*आजादी के अमृत महोत्सव बीतने के बाद भी शहीद वीर मनीराम अहिरवार का स्वतंत्रता आंदोलन का योगदान अनदेखा क्यों* ? *सरकार दें अब सम्मान*

मूलचन्द मेधोनिया

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*चीचली तहसील गाडरवारा जिला नरसिंहपुर मध्यप्रदेश*

सन 1942 में महात्मा गॉंधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अंग्रेजों भारत छोडो़ आंदोलन पूरे देश भर में चला कर आवाहन किया था कि सभी देशवासियों को इस आंदोलन में हिस्सा लेकर सहयोग करना है। यह खबर बडे़ शहरों के बाद देश के कोने कोने में आग की तरह फैल चुकी थी।
अंग्रेजी सेना ने जबलपुर, गढ़ मंडला में अपनी फौज को स्थाई रुप से लाकर यहां पर अपने कार्यालय, कोर्ट- कचेहरी और गुप्त जेलखाना बना कर यहां की धन दौलत संपत्ति को लूट कर अपना राज्य स्थापित करने में जुटे थे। चूंकि उन्होंने जबलपुर स्टेट के गोंडवाना राजा श्री

शंकर शाह व श्री रघुनाथ शाह जी को तोप के सामने खड़ा कर हत्या करने से उनके होंसले बुलंद थे। उनका मकसद था कि गोंडवाना राजाओं की हत्याएं कर इनकी धन संपत्ति और संस्कृति को नष्ट कर वह अपनी अंग्रेजी हुकूमत के माध्यम से शासन चला सकें।

अंग्रेजों की यही नापाक कोशिश को साकार करने हेतु उन्होंने विचार किया कि नरसिंहपुर जिला के गोंडवाना राजा श्री विजय बहादुर शाह जी का निधन हो चुका है। उनके सिर्फ एक पुत्र था,जिनका नाम शंकर प्रताप सिंह था। जो कि उन दिनों राज पाट की शिक्षा ग्रहण करने हेतु बाहर गयें थे। चीचली गोंड राजा का राज महल राजा विहीन है। यह अवसर का लाभ उठाने के उद्देश्य से अंग्रेजी सेना की एक टुकडी़ दिनांक 23 अगस्त 1942 को महल को लुटने के लिए आ धमकी। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि चीचली नरेश श्री विजय बहादुर शाह जी ने गोंडवाना राजमहल की सुरक्षा की पूरी जवाबदेही उनके सदैव साथ महल की देखभाल करने वाले महान योद्धा जो कि पहलवान एवं अखाड़े का बेमिसाल उस्ताद श्री मनीराम अहिरवार जी को गोंड राजा के महल की आंतरिक व बाहरी
सुरक्षा की रक्षा के लिए ऐसे बहादुर को सौंप रखीं थी। जो कि बंदूक की गोली से भी ज्यादा अचूक पत्थर के निशाने बाज महाभारत के अर्जुन की भांति थे।
जिनका केवल निशाना ही लक्ष्य रहता था।

गोंडवाना राजमहल की ओर अंग्रेजी सेना बडे़ चली आ रही थी। वीर मनीराम जी ने वही रुकने व अपना परिचय देने की आवाज दी, अंग्रेजी सेना राजमहल के सेवादार की अनसुनी कर आगे बढ़ती चली आ रहें थी। जिन्हें वही ठहरने हेतु बंदूक की तरह पत्थर चलाया तो अंग्रेजी सेना जान गई कि यह जरुर महात्मा गॉंधी का क्रांतिकारी हो सकता है। अंग्रेज नही रुके और महल के करीब ही आ गयें। वीर मनीराम अहिरवार ने ललकारते हुये अंग्रेजों सालों वही रुको ऐसी गाली दी। तब अंग्रेजी सेना ने पहले आसमानी गोली चला कर वीर मनीराम को डराना चाहा लेकिन वीर तो एक शाक्तिशाली पुरुष थे। उन्होंने ऐलान कर दिया कि महल तरह आओंगें तो मुझसे युद्ध करना होगा। अंग्रेजी सेना व मनीराम जी के बीच में आमने सामने युद्ध छिड़ गया। तत्काल यह खबर गांव के युवा नेताओं को लगी तो वह भी मनीराम जी के युद्ध को देखने तो कोई सहयोग करने सामने आ गयें। मनीराम जी के सबसे प्रिय साथी वीर मंशाराम जसाटी जी ने आकर मोर्चा संभाला और कहने लगे कि क्यों युद्ध में गोली चला रहे है। जब मंशाराम जसाटी जी आगे आये तो एक गोली उनके सीने में लगी और वह युद्ध स्थल पर ही शहीद हो गयें। जिनकी वीरोचित शहादत देखकर वीर मनीराम जी आग बबूले होकर अपने अंग वस्त्र ऊतार कर अंग्रेजी सेना के सामने आकर पत्थर अधिक चलाने लगे। अंग्रेजों की ओर से बंदूक फायर की बौछार होने लगीं। पर मनीराम जी अपनी हर कला बाजी से अंग्रेजों के युद्ध में छक्के छुड़ा रहे थे। इनके पत्थर से अंग्रेज लहूलुहान होने लगे, उनके सिरों से इतना खून बहने लगा था कि वह एक के बाद एक घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। अंग्रेजों ने एक और अंतिम फायरिंग सीधे वीर मनीराम जी के सीने पर किया तो उन्होंने अपनी कला से पलटी मारी और हर गोली को लोटपोट होकर अपने को बचाते रहे। इसी बीच में युद्ध की भीड़ भाड़ में गौरादेवी कतिया जी सामने आकर अपनी बेटी को ढु़ढ़ने आई और मनीराम पर चली गोली उनको लगी इस प्रकार वह भी वीरगति को पाकर वीरांगना हो गई।

वीर मनीराम अहिरवार जी ने युद्ध में अंग्रेजी सेना को परास्त कर अपने गांव से खदेड़ कर भगा कर विजय श्री प्राप्त की एवं अपने गोंडवाना राजमहल की ईमानदारी से रक्षा करते हुए अपने प्राणों की परवाह नहीं करते हुए देश के महान स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में योगदान देते हुए देश व अपने आदिवासी राजघराने की संस्कृति को बचाने का बहुत बड़ा नेक काम किया गया, जो कि वह राजमहल आज भी हमारी बिरासत के रूप में है। जहां पर आज सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय संचालित है।

चीचली में गोंडवाना राजमहल की सुरक्षा में तैनात वीर मनीराम अहिरवार जी की पतासाजी करने के लिए दूसरे दिन 24 अगस्त 1942 को अंग्रेजी सेना के अफसरों को टीम आकर वीर मनीराम का पता किया। लेकिन वह महल में ही भूमिगत हो गये। अंग्रेज अफसर गांव के कुछ युवाओं को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई, सबसे पूछताछ की लेकिन मनीराम जी के विषय में हर किसी को जानकारी नहीं होती थी। तब अंग्रेजों ने मनीराम जी को जिंदा पकड़ कर उनसे और उनकी बिरादरी के युवाओं को अपना काम कराने, बौझा ढ़ोने जो कि गुलामी व बेगारी कराने हेतु छल कपट से पकड़ा गया। अंग्रेजों ने हवा भी फैलाई की राजा वापस चीचली आ गयें है। जो कि वीर मनीराम को सम्मान के रूप में जमीन, पैसे और ईनाम देना चाहते है। इस तरह के जाल अंग्रेजों ने फैलाकर वीर मनीराम जी को गुप्त रूप से पकड़ कर अपनी जेलखाना ले गये। जिनकी गिरफ्तारी भी रिकार्ड में नहीं ली गई। उन्हें ले जाकर अमानवीय यातनाएं व उत्पीड़न किया कि वह चीचली नरेश की गुप्त जानकारी राजमहल संबंधित दे। तथा अपने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के सैकड़ों लोगों को अंग्रेजी सेना में भर्ती करें। अंग्रेजों ने उन्हें लोभ भी दिया कि वह सेना का सरदार बना देगें। किसी भी प्रकार की अंग्रेजों की शर्त न स्वीकार करने पर उन्होंने महान क्रांतिकारी वीर मनीराम अहिरवार जी को अंग्रेजी जेलखाना में ही दफन कर दिया।
वीर मनीराम अहिरवार जी को दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के आंदोलन में इतना अहम और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद उन्हें आज तक कोई सम्मान नही दिया है। इनके उतराधिकारी के तौर पर मूलचन्द मेधोनिया और इनका परिवार बर्षो से मांग करते आ रहें है कि हमारे महान क्रांतिकारी वीर शहीद दादा जी को सरकारी दर्जा दिया जाये, उनका स्मारक, मूर्ति और सामाजिक प्ररेणा बहुमंजिला बनाया जाये। अभी तक की सरकार ने कोई इस विषय पर ध्यान नही दिया। जबकि
देश ने आजादी की 75 वीं बर्षगांठ अमृत महोत्सव के रूप में मनाई। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने घोषणा कर आजादी में योगदान देने वाले भूले बिसरे शहीद, सेनानियों के नाम सरकार को भेजने और उनके योगदान पर लेख, रिपोर्ट, कविताएँ, जानकारी सरकार ने आमंत्रित की। देश, प्रदेश और जिसे के सैकड़ों साहित्यकारों, लेखकों, कविओं, पत्रकारों और छात्रों ने अमर शहीद वीर मनीराम जी के योगदान पर लेख के माध्यम से जानकारी सार्वजनिक की। अनुसूचित जाति वर्ग के सामाजिक संगठनों ने इन्हें सम्मान देने की पुरजोर आवाज उठाई। लेकिन अभी तक सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया।

कांग्रेस ने जरूर देश आजादी के बाद अब ध्यान दिया, और अपने विधानसभा चुनाव 2023 के चुनाव वचन पत्र उल्लेख किया कि वह सरकार बनने के बाद वीर मनीराम जी की जन्मभूमि पर विशाल स्मारक और मूर्ति स्थापित करेंगे। लेकिन सरकार कांग्रेस की न बनकर भाजपा की मध्यप्रदेश में बनी है। जिससे आये दिन सामाजिक संगठनों के माध्यम से मांग उठ रही है।
मध्यप्रदेश की सरकार के लिए चाहिए कि जो कि देश की आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के पश्चात जो कांग्रेस ने ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी को जो सम्मान नही दिया है। वह वर्तमान सरकार दें ताकि देश व इस वर्ग के लोग गौरवान्वित हो। यहां विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए सरकार से अनुरोध भी है कि जो भी सरकारी लाभ, सुविधाएं शासन द्वारा शहीद परिवार को दी जाती रही है, वह सभी लाभ परिवार को प्रदान किया जाये।

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