आशा का एक दीप अपने मन मंदिर में जरूर प्रज्वलित रखिये..

*”यह महज एक कहानी नहीं हैं”->*

*✍️ ,,,कहानी कहती हैं कि,असंभव शब्द मूर्खों के शब्द कोष में आता हैं।जिन्हें क्रिकेट की थोड़ी सी भी जानकारी हैं,तो इसे पढ़िए और जिन्हें नहीं हैं वो भी पढ़िए।अभी क्रिकेट का विश्व कप चल रहा हैं।और एक निर्णायक मुकाबले में.शायद ग्यारह विश्व कप में पांच बार की विजेता और तीन बार की उपविजेता टीम ऑस्ट्रेलिया और एक ऐसी टीम जिसके पास खेलने के लिए अपना खुद का मैदान भी नहीं हैं “अफगानिस्तान” के मध्य एक मैच हो रहा था!कहानी कहती हैं की इतिहास कैसे लिखे जाते हैं!विश्व की सबसे शक्तिशाली टीम ऑस्ट्रेलिया के सामने एक अदनी सी टीम ने 291 रन बनाकर वह भी मात्र 5 विकेट खोकर इतिहास बना दिया।इतिहास यहीं समाप्त नहीं हुआ..अगले पन्नों पर दूसरा इतिहास लिखा गया की जब बॉलिंग की बारी आई तो विश्व के श्रेष्ठतम सात बल्लेबाजों को मात्र 91 रन पर पेवेलियन की राह दिखा दी!इतिहास कभी समाप्त नहीं होता। हर अगला कोरा पन्ना चाहता हैं कि मैं भी इतिहास के नए अध्याय का साक्षी बनू । 91 पर सात विकेट स्कोर बोर्ड पर टंगे थे।सारे क्रिकेट के विशेषज्ञ,सट्टा बाजार के धुरंधर,कॉमेट्री करने वाले.और आस्ट्रेलियाई सपोर्टर भी ऑस्ट्रेलिया की हार मान चुके थे।TV पर बार बार बताया जा रहा था की आस्ट्रेलिया की जीत की संभावना मात्र एक पर्सेन्ट हैं।लेकिन जैसा की क्रिकेट में होता हैं..क्रिकेट में 35 बरस की उम्र अमूमन रिटायरमेंट की उम्र मानी जाती हैं!इस उम्र का एक खिलाड़ी ग्लेन जेम्स मैक्सवेल पिच पर था और अब इतिहास का वह पन्ना लिखा जाना था जिसमे स्वर्णिम अक्षरों से भी ज्यादा कोई उपमा दी जा सकती हैं तो दे सकते हैं!128 बालों में 201 रन की अविजित पारी

खेलकर आस्ट्रेलिया को जीत ही नहीं दिलाई वरन उसे अंतिम चार में पहुंचाकर एक शर्मनाक हार से बचा लिया।जिस आत्म विश्वास,जिस धैर्य,जिस जज्बे से और जिस जिद के साथ वह खेले उसके लिए केवल एक ही शब्द कहा जा सकता हैं…”अदभुत”…! अकल्पनीय!! कहानी कहती हैं कि हमारे जीवन में भी कभी ऐसे लम्हें आए और हमे लगे की सब कुछ समाप्त हो गया है,,तब..तब…मैक्सवेल की इस पारी को याद करिये,कभी भी सब कुछ समाप्त नहीं होता मेरे दोस्त,..कुछ न कुछ शेष जरूर रहता हैं!जब बिजनस चौपट हो जाय.जब सारी फसल नष्ट हो जाय.जब किसी परीक्षा में फैल हो आए…जॉब छूट जाय..कहीं दूर ट्रांसफर हो जाय,कोई हमारा अपना हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाय,कोई हमारा अपना विश्वासघात कर ले..अपने बच्चे अपना मानने से इंकार कर दे,किसी खेल प्रतियोगिता में लास्ट नंबर पर रहे..तब भी..तब भी मैक्सवेल की तरह आशा का एक दीप अपने मन मंदिर में जरूर प्रज्वलित रखिये..उस नीली छतरी वाले पर विश्वास रखे की वह सब कुछ समाप्त होने पर भी कुछ न कुछ तो हमारे लिए जरूर छोड़ कर जायेगा.हमे बस उस कुछ को ढूंढना भर हैं!हाँ एक बात और…अगर किसी लक्ष्य को प्राप्त करना हो तो मैक्सवेल की तरह एक जुनून के साथ,धैर्य के साथ,तकलीफों को नजर अंदाज करते हुए,..(मांसपेशियों में बार बर खिंचाव होने के बाद भी).अथक परिश्रम करे तो पूरी कायनात (33 पर जीवनदान) भी,,हमारी मदद करने के लिए दौड़ पड़ती हैं!इस लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा में कमिंस जैसा कोई ऐसा साथी भी वो मालिक भेजेगा जिसने 76 गेंदों में मात्र 12 रन बनाए लेकिन..जब जब मैक्सवेल की पारी की बात की जाएगी तब तब कमिंस की बात भी जरूर होगी और निश्चित सफलता मिलेगी ही मिलेगी क्योंकि…जिद के आगे ही जीत हैं।👍🏻*
*दीपोत्सव भी हमे यही सिखाता हैं की हम इन दीपों की रोशनी में आशाओं की किरणों को ढूंढे और निराशाओं का शमन करे।*

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