जादू एवं भ्रम का लोक “पाताल कोट”

मनोज गढवाल की खास रिपोर्ट

 

परासिया:- विहगंम सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला और दर्शनीय गहन जगंलो के बीच धरती से3000 हजार फीट नीचे वसा पाताल कोट जादू एवं भ्रम का लोक माना जाता है। मध्यप्रदेश के जिले छिन्दवाड़ा तामिया अन्तर्गत आने वाला पाताल कोट को अनेको किवंदतियो से तो जोड़ा ही जाता है। साथ ही उक्त क्षेत्र अनेको जीवन दायी औषधियो का खजाना भी कहलाता है। पातालकोट एक भ्रमित करने वाली जादूई स्थली है, यहां वर्षो से मानव जीवन पोषित हो रहा है, यहां के अनेक क्षेत्रों में आज भी धूप नही पहुचती दिन की कड़ी धूप में भी शाम जैसा नजारा बना रहता है. कुछ वर्षो पहले यहां पहुचना भी कठिनाईयो से भरा होता था किन्तु शनै- शनै हुए कार्यों से अब सुगमता से यहां पहुंचा जा सकता है। पाताल कोट में लगभग 12 गांव वसते है जिसमें 2000 से ज्यादा भारिया एवं गौड़ जनजाति के लोग निवास

करते है, धरती के 1700 फीट नीचे बस्तियों की बसाहट है प्रत्येक गांवो में कुछ दूरिया भी है। गहन शक्तिशाली सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं गहन जगलो से घिरे होने से प्राकृतिक सौन्दर्य सुन्दर परि दृश्य लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है, पातालकोट का विकास पर्यटन स्थल घोषित कर लगातार किया जा रहा है। जिले से चलने वाली राजधानी के लिए ट्रेन पातालकोट को इसी क्षेत्र के नाम पर पातालकोट एक्स्प्रेस नाम दिया गया।

जीवन दायी औषिधियों का खजाना पाताललोक:- पाताल कोट के जंगलो में ऐसी अनेको जीवन दायी औषिधिया पायी जाती हैं जो सिर्फ हिमालया मे ही मौजूद है, यह भी रहस्य ही है कि कोरोना काल में जहां पूरी दुनिया में महामारी से लोग हताहत हुए यहा से एक भी मामला करोना का सामने नही आया। यहां वसने वाले जनजातिय लोगो को न ही आक्सीजन के लिए भटकना पड़ा न ही यह महामारी इस क्षेत्र तक पहुच सकी, यहां के लोग बताते है कि औषधिया के सहारे उनका जीवन सुरक्षित रहा. यहां के गांवो की बसाहट भी कुछ ऐसी है कि सोसल डिस्टेनसिंग का स्वमेव पालन होता है। धरातल से 3 हजार फीट नीचे यह जीवन दुलर्भ तो है ही अति अविस्मयी एवं रोमांच कारी भी लगता है। 89 वर्ग कि. मी. मे वसा पाताल कोट सदियो तक बाहरी दुनिया के लिए अनजान भी रहा, औषधि पौधो का खजाना इन घने विहंगम जगलो में पाया जाता है जिनकी पहचान निवास रत जनजाति के लोगो को

भलि भांति है- यहां जगली अदरक, चिरोयता, गिलोई, सौंठ, शहद अनेको ऐसी वन सम्पदा है जिसके सहारे यहा लोग अपना जीवन यापन करते है, भले ही वर्षो से इनका बाहरी दुनिया से सम्र्पक न के बराबर रहा हो किन्तु वर्तमान में जागरूकता का परिचय भी यहां के निवासियो ने दिया वैक्सिनेसन भी यंहा के लोगो ने कराया। इनका रोजमर्रा का खान पान यहां की वन सम्पदा पर ही निर्भर करता है एवं वन औषिधयों का इनके द्वारा व्यवसाय भी किया जाता है।

अनेको किवदंतिया है प्रचलितः- धरातल से 3 हजार फिट नीचे बसे इस क्षेत्र को वैसे ही जादू एवं भ्रम की धरती नहीं कहां जाता है यहां से जूडी अनेको किवदंतियां प्रचलित है जो वर्तमान समय तक यहां निवासरत गोंड, भारिया बैगा अन्य जनजातियों लोगो द्वारा मनाई भी जाती है कहा जाता है कि इसी पाताल लोक मे माता सीता पृथ्वी में समाहित हुई थी।

जिससे इस लोक का निर्माण हुआ, इसी लोक से रावण पुत्र मेघनाथ शिवपूजा कर पाताललोक को गया, यहां के लोग रावण एवं मेघनाथ की पूजा भी करते है। विष्णु अवतार वामन और राजाबलि ही पाताल लोक के राजा माने जाते है, यहां के लोग किसी भी जगली जानवारो से वैखौफ अपना नित्य जीवन यापन करते है शेर आदि जानवरो से भी ये भयभीत नही होते। कहां जाए तो यहां के लोग सभी मायने में आत्मनिर्भर है, यहां लगभग 220 प्रकार की वन औषधी का खजाना पाया जाता है जिससे अनेको गंभीर बिमारियो का यह सफल इलाज करते है।

यहां के लोग आज भी घास पूस एवं मिट्टी से बने मकानो में रहकर स्वस्थ्य जीवन यापन करते है, जड़ी बूटियों से इलाज के अलावा झाड़ फूक जैसी बातो के लिए यह क्षेत्र के लोग माने जाते है श्रीलंका के प्रसिध्द किकेटर सनथ जयसूर्या को डा प्रकाश टाटा द्वारा कमर पैर की गंभीर बिमारी से पाताल कोट की जड़ी बूटी से इलाज कर ठीक किया गया जो कि अनेको चिकित्सा को द्वारा नही किया जा सका था, यहां पहुंच कर किसी अनोखे लोक में पहुंचने का स्वतः ही एहसास होता है, क्षेत्र निरन्तर पर्यटन विकास से जुड़ कर आगे बढ़ रहा है।

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