आज हम इस विषय पर विचार करते हैं कि हम कितने महत्वपूर्ण हैं या नहीं हम जिस देश में रहते हैं वहां की कुल जनसंख्या लगभग एक सौ 40 करोड़ है अगर हम पूरे विश्व की जनसंख्या के बारे में सोचें तो विश्व की जनसंख्या लगभग 780 करोड़ के आसपास होगी इस पूरी गिनती में हमने सिर्फ मनुष्यों को ही शामिल किया है जबकि पृथ्वी पर अन्य जीव जंतु भी दिखाई देते हैं किंतु अन्य जीव जंतु को मिलाकर इस संख्या को जोड़ पाना संभव ही नहीं है चलिए अब हम बात करते हैं हम सब के पालनहार की अर्थात उस शक्ति की जो इस पूरे ब्रह्मांड को संचालित करती है हम सभी उन शक्तियों को अलग-अलग नामों से पुकारते हैं या जानते हैं ,
कुछ विचार करें तो सर्व शक्तिमान कोई देवी देवता या कोई कुछ और भी कहता है कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है यह सब कुदरत और विज्ञान के जटिल सिद्धांतों से चलता है ।
चलिए अब हम मूल विषय मुख्य धारा में बात करते हैं , हम कौन हैं अर्थात में कौन हैं मैं उन असंख्य करोड़ जी भैया लोगों में एक हूं वास्तव में उन असंख्य प्राणियों में से एक छोटा सजीव हो जिसकी गिनती ही संभव नहीं मेरे जैसे अन्य करो लोग और इस दुनिया में हैं और अन्य जीव-जंतुओं की गिनती का पता ही नहीं जिस पालनहार की हम सबको पालने की जिम्मेदारी है उसमें हमारा स्थान कौन सा होगा यह अंदाजा लगा पाना नामुमकिन
सा ही है और हम सभी अक्सर एक भूल कर लेते हैं कि हम कोई महत्वपूर्ण या विशेष व्यक्ति हैं यदि हम गहन चिंतन कर सोचें तो हमारे अंदर ऐसी कौन सी खूबी है जो हम इन करो लोगों में से किसी के पास नहीं है हमने ऐसा कौन सा काम किया होगा जो इसमें से किसी ने ना किया हमारे अंदर ऐसा कौन सा गुण है जो हमें अन्य लोगों से महत्वपूर्ण बनाता है तो शायद हम निर्णय पर पहुंचेंगे कि ऐसा कोई भी गुण नहीं है इन बातों का सार यह है कि हमें अपने जीवन में घमंड से बचना चाहिए हमें जो कुछ भी मिला है वह उस पालनहार ईश्वर की कृपा से मिला है इसमें
हमारा कोई भी विशेष योगदान नहीं और अगर किसी को कुछ कम भी मिला है तो वह भी उसी पालनहार दिया ईश्वर की नीति प्रबंध है जो उसकी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का काम कर रहा है हमें हमारे संस्कार सिखाते हैं कि हम सरल रहें सहज रहें और जिसको ही आप मानते हैं उनके प्रति कृतज्ञ रहे वास्तव में हमारा व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है ,
और हम महत्वपूर्ण भी नहीं इस पर हमें विचार करके लोगों के प्रति प्रेम समर्पण त्याग करुणा और दया का भाव हृदय में बनाए रखना चाहिए इस पूरे विचार मंथन से ऐसा विचार मन में बना की मैं महत्वपूर्ण नहीं हु।
जितेन्द्र मालवीय