लाल झंडा कोल माइन मजदूर यूनियन (सीटू) पाथाखेड़ा क्षेत्र में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया सीटू का स्थापना दिवस मनाया गया
लाल झंडा कोल माइन्स मजदूर यूनियन ( सीटू) यूनियन पाथाखेड़ा के क्षेत्रीय कार्यालय में कामरेड जगदीश डिगरसे वेकोलि अध्यक्ष द्वारा ध्वजारोहण कर कामरेड जगदीश डिगरसे ने मौजूदा परिस्थितियों में सीटू की प्रासंगिकता विषय पर कहा कि देश में तत्कालीन मजदूर आंदोलन में आए ठहराव के कारण सीटू की स्थापना की आवश्यकता हुई थी। काफी जद्दोजहद के बाद 1970 में कोलकाता के मीनार मैदान में चार दिवसीय
सम्मेलन में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन की स्थापना हुई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य देश में मजदूरों की एकता को कायम करना और शोषण के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन करना था। सीटू ने अपने लक्ष्य और उद्देश्यों पर काम करते हुए मजदूर वर्ग के शोषण के खिलाफ कई बड़े संघर्ष किए और उपलब्धियां भी हासिल की हैं। आज ईमानदार और संघर्षशील यूनियन के नाम पर सीटू देश में स्थापित है।सीटू ने पूरे देश के सर्वहारा वर्ग के
लिए कई संगठन बनाए और उन संगठनों के माध्यम से संघर्ष करते हुए शोषण से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। आगे भी शोषण के समाप्त होते तक यह संघर्ष जारी रहेगा। कई राष्ट्रीय हड़तालों में सीटू ने ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सरकार को कई मजदूर विरोधी नीतियों से पीछे धकेलने में कामयाब हुए। सीटू का काम केवल मजदूरों के वेतन भत्ते बढ़ाने
की मांग करना नहीं है बल्कि देश की राष्ट्रीय संपत्ति को बचाना भी है। सीटू की कार्यशैली अन्य ट्रेड यूनियनों से बेहद अलग है। सीटू जनवादी प्रक्रिया का पालन करते हुए संगठनों का निर्माण करती है और उनका संचालन भी लोकतांत्रिक पद्धति से ही किया जाता है। सीटू की छवि ईमानदार संगठन के रूप में है। उन्होंने कहा कि सीटू ने सार्वजनिक उपक्रमों को बचाने की
लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। नियमित व ठेका मजदूरों के शोषण के खिलाफ भी संघर्ष किया है। कामरेड कामेश्वर राय ने कहा कि एकता पर जोर
यद्यपि श्रमिक वर्ग विभिन्न ट्रेड यूनियनों में अत्यधिक विभाजित है, जिन्हें राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त है, सीटू ने सभी रंगों और रंगों की यूनियनों के साथ वर्षों से सफलतापूर्वक संयुक्त
संघर्ष मंच का निर्माण किया है। ज्यादातर, बड़े राजनीतिक दलों से जुड़े संघ उस समय निष्क्रिय हो जाते हैं जब उनकी पार्टी सत्ता में होती है,। लेकिन हाल के दशकों में हड़ताल की अधिकांश कार्रवाइयाँ संयुक्त आह्वान रही हैं। इसका मतलब है कि संघर्षों की पहुंच और अनुभव सीटू के सांगठनिक प्रभाव से कहीं आगे है।
आने वाले दिनों में, ट्रेड यूनियन आंदोलन – बेरोजगारी, सांप्रदायिक और जातिवादी विभाजन, अंधराष्ट्रवादी प्रभाव, और इसी तरह के मुद्दों की एक विस्तृत विविधता का सामना करना होगा और उनसे निपटना होगा। विभाजनकारी मुद्दे अनिवार्य रूप से ट्रेड यूनियन आंदोलन को निरस्त्र करते हुए एक सहयोगी दृष्टिकोण की मांग करते हैं। वेतन में कमी और घोर भर्ती और
बर्खास्तगी के माध्यम से बेरोजगारी श्रमिकों के अधिकारों पर प्रहार करती है, फिर से आंदोलन को निःशस्त्र कर देती है। जबकि सीटू इन मुद्दों को संबोधित करता रहा है, उसे बाकी आंदोलन के लिए भी रास्ता दिखाना होगा, जैसा कि उसने अन्य चीजों में किया है। क्षेत्रीय अध्यक्ष कामरेड अशोक बुंदेला ने अतीत में सीटू द्वारा किए गए संघर्षों के इतिहास के साथ-साथ
स्वतंत्रता संग्राम में आम मज़दूरों द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि “संघर्ष” श्रमिकों की परंपरा रही है, और आने वाले वर्षों में विभाजनकारी शक्तियों के बीच सभी लोगों को एकजुट करने क विशाल काम मौजूद है। उन्होंने “एकता के लिए एकता नहीं, बल्कि संघर्ष के लिए एकता” पर जोर दिया।