Kalapani Punishment यहाँ कालापानी की सजा दी जाती थी
यहाँ काला पानी की सजा दी जाती थी ।यहाँ 700 कैदियों के लिए 700 सेल बने हुए हैं और इनका निर्माण कैदियों से ही करवाया है।स्टार शेप में 7 विंग बने हैं । बीच मे वाचिंग टॉवर हैं ।इस तरह की विंग हैं जिसमे सेल बने हैं एक कैदी के लिये एक सेल ।वीर सावरकर को यहाँ सेल में रखा गया था वे यहाँ 10 साल रहे ।विनायक दामोदर सावरकर (वीर) के साथ साथ उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर को भी इस जेल में रखा था लेकिन वीर सावरकर को 3 साल तक इस बात का पता नही था ।स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के स्मृति में यहा अखण्ड ज्योति हैं ।यहाँ एक साथ 3 लोगो को फांसी दी जाती थी फिर शव को पानी मे फेंक देते थे । मृत्यु (काल) तक जेल में बंद रखने के बाद पानी मे फेंक दिया जाता था इसलिए इसे काला पानी कहा जाता हैं ।कालापानी की सजा का नाम सुनकर अच्छे अच्छों की रूह कांप जाती है। अगर आप कार्यालय में काम कर रहे हों तो आपने अपने बास या मुखिया से अक्सर यह शब्द सुने होंगे कि अगर अच्छा काम न किया तो काला पानी भेज देंगे। कई कर्मचारी भी ऐसे होंगे, जो नापसंद की जगह तैनाती को काला पानी करार देते होंगे। इससे एक बात स्पष्ट है कि काला पानी की सजा अर्थात मुश्किल सजा, मुश्किल स्थान। दरअसल कालापानी शब्द ही खौफ का पर्याय है वह इसलिए क्योंकि कालापानी की सजा को बेहद खौफनाक माना जाता था।सेल्युलर जेल अर्थात कालापानी जेल भारत से हजारों किलोमीटर की दूरी पर आज के अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी थी, जहां चारों ओर पानी ही पानी था। यहां मूल रूप से भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को सजा देकर भेजा जाता था। बेड़ियों में जकड़कर रखा जाता था। चारों ओर समुद्र का पानी होने की वजह से कोई भी कैदी यहां से भागने में कामयाब नहीं हो पाता था। यह पूरा क्षेत्र बंगाल की खा़ड़ी के तहत आता था। यहां कैदियों को सामान्य जनों से दूर रखने का प्रावधान था और कड़ी यातनाएं दी जाती थीं।जो भी जाएगा यहां से वापस नहीं आ पाएगा, लिहाजा इसे कालापानी की संज्ञा दी गई थी। 19वीं सदी में जब स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा तो इसके साथ ही कैदियों की संख्या भी यहां बढ़ती गई। यह भी बता दें कि इसे बनवाने का विचार अंग्रेजों को 1857 की क्रांति के बाद आया था। वह स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वालों को ऐसी जगह भेजना चाहते थे, जहां उनको घोर यातनाएं दी जा सकें ।यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी। कालापानी शब्द अंडमान के बंदी उपनिवेश के लिए देश निकला देने का पर्याय है | कालापानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल से बना है जिसका अर्थ होता है समय अथवा मृत्यु| अर्थात कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है जहाँ से कोई वापस नहीं आता है| देश निकालों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएँ सहना था| कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों उन अनकही यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना जो मौत की सजा से भी बदतर था |
आज़ादी के बाद – :भारत की आज़ादी के बाद जेल के दो खंडो को तबाह कर दिया गया। बल्कि बहुत से भूतपूर्व कैदियों ने इसका विरोध भी किया था और राजनितिक नेता भी इसे इतिहास धरोहर के रूप में सुरक्षित रखना चाहते थे। इसीलिए 1969 में इसे राष्ट्रिय स्मारक में परिवर्तित कर दिया गया।1963 में सेलुलर जेल के परिसर में गोविंद बल्लभ पन्त हॉस्पिटल की स्थापना की गयी। वर्तमान में यह 500-पलंगो का एक विशाल अस्पताल है जहाँ 40 से भी ज्यादा डॉक्टर मरीजो की सेवा करते है।10 मार्च 2006 को जेल ने अपने निर्माण की शताब्दी पूरी की। इस अवसर पर बहुत से प्रसिद्ध कैद्यो को भारत सरकार ने सम्मानित किया था।