कथा में बताया कैसे एक छोटा बालक भी दृढ़ निश्चय और कठोर तपस्या के बल पर भगवान को धरती पर आने को विवश कर सकता है
कथा के चतुर्थ दिवस में कथा व्यास पंडित भूपेंद्र जी बिलगैया नाम जप की महिमा बताते हुए भक्त पहलाद एवं ध्रुव के चरित्र की कथा सुनाई एवं उनके द्वारा बताया गया कि विष्णु पुराण में भक्त ध्रुव की कथा आती है, जिसने इस बात को सिद्ध किया कि कैसे एक छोटा बालक भी दृढ़ निश्चय और कठोर तपस्या के बल पर भगवान को धरती पर आने को विवश कर सकता है।
आइये विस्तार से जानते हैं ध्रुव की कहानी जो बच्चों के लिये विशेष प्रेरणादायक है।
भक्त ध्रुव की कथा,
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा के पुत्र उत्तानपाद मनु के बाद सिंहासन पर विराजमान हुए। उत्तानपाद अपने पिता मनु के समान ही न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा थे।
उत्तानपाद की दो रानियां थी। बड़ी का नाम सुनीति और छोटी का नाम सुरुचि था। सुनीति को एक पुत्र ध्रुव और सुरुचि को भी एक पुत्र था जिसका नाम उत्तम था।
ध्रुव बड़ा होने के कारण राजगद्दी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी था पर सुरुचि अपने पुत्र उत्तम को पिता के बाद राजा बनते देखना चाहती थी।
इस कारण वो ध्रुव और उसकी माँ सुनीति से ईर्ष्या करने लगी और धीरे धीरे उत्तानपाद को अपने मोहमाया के जाल में बांधने लगी।
इस प्रकार सुरुचि ने ध्रुव और सुनीति को उत्तानपाद से दूर कर दिया। उत्तानपाद भी सुरुचि के रूप पर मोहित होकर अपने पारिवारिक कर्तव्यों से विमुख हो गए और सुनीति की उपेक्षा करने लगे।
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सुरुचि द्वारा भक्त ध्रुव का अपमान
एक दिन बालक ध्रुव पिता से मिलने की जिद करने लगा, माता ने तिरस्कार के भय से और बालक के कोमल मन को ठेस ना लगे इसलिए ध्रुव को बहलाने लगी पर ध्रुव अपनी जिद पर अड़ा रहा। अंत में माता ने हारकर उसे पिता के पास जाने की आज्ञा दे दी।
जब ध्रुव पिता के पास पहुँचा तो देखा कि उसके पिता राजसिंघासन पर बैठे हैं और वहीँ पास में उसकी विमाता सुरुचि भी बैठी है। अपने भाई उत्तम को पिता की गोद में बैठा देखकर ध्रुव की इक्षा भी पिता की गोद में बैठने की हुई।
पर उत्तानपाद ने अपनी प्रिय पत्नी सुरुचि के सामने गोद में चढ़ने को लालायित प्रेमवश आये हुए अपने पुत्र का आदर नहीं किया। आगे पंडित भूपेंद्रबिलगैया जी ने भक्त पहलाद की कहानी पर प्रकाश डालते हुए श्रद्धालुओं को बताया किप्रहलाद की कहानी भक्त प्रहलाद का जन्म उस समय की बात है, जब पृथ्वी लोक पर हिरणकश्यप और हिरण्याक्ष दो असुरों ने भयंकर उत्पात मचा रखा था।
वे ऋषि मुनियों को मारते तथा उनके यज्ञ अनुसन्धान को नष्ट करते थे। उनका देवताओं से भी कई बार युद्ध हुआ, किन्तु देवता उनकी मयाबी शक्तियों के सामने टिक नहीं पायें।
अंततः देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया, जिससे हिरणकश्यप बदले की आग में जलने लगा और शक्तियाँ प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगा।
जबकि उसकी पत्नि कयाधु माँ बनने वाली थी और उसके कोख में हिरणकश्यप की संतान पल रही थी। इस बात की खबर जब इंद्र देव को लगी तो उन्होंने सोचा हिरणकश्यप की तरह उसकी संतान भी दुष्ट प्रकृति की होगी अतः उसका जन्म होते वध कर देना उचित होगा
इसलिए इंद्रदेव ने हिरणकश्यप की अनुपस्थिति में उसकी पत्नि कयाधु का हरण कर लिया। तथा उसे इंद्रलोक ले जाने लगे। तभी रास्ते में उन्हें नारद जी मिले और नारद जी ने इंद्रदेव से हिरणकश्यप की पत्नी कयाधु के हरण का कारण पूँछा
तो इंद्रदेव बोले !हे नारद मुनि मेरा कयाधु से कोई बैर नहीं है में तो हिरण्यकश्यप की होने वाली दुष्ट संतान का वध करना चाहता हुँ, जैसे ही कयाधु संतान को जन्म देगी में उस संतान का वध करके कयाधु को छोड़ दूँगा।
तब देवर्षि नारद बोले !हे इंद्र तुम ये क्या पाप करने जा रहें हो कयाधु की गर्भ में जो संतान है. वह दुष्ट प्रकृति की नहीं है अपितु वह भगवान विष्णु की अनन्य भक्त है और तुम उसे नष्ट करने की कह रहें हो।
इसके बाद इंद्रदेव ने कयाधु को छोड़ दिया और नारद जी उसे लेकर अपने आश्रम में पहुँचे, जहाँ पर भक्ति का माहौल तथा उपदेश पाकर कयाधु की संतान में भक्ति का रस भर गया और कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया
जिसका नाम भक्त प्रहलाद रखा इसके पश्चात् कयाधु अपने पुत्र को लेकर अपने महल आ गयी।
भक्त प्रहलाद की कथा
होलिका और भक्त प्रहलाद की कहानी
भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया।
कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को शत्रु मानता था और बदले की भावना में चल रहा था
क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई है हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः उसने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया
और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली हिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्ट प्रकृति की राक्षसी थी। उसे भगवान शंकर जी के द्वारा एक चादर प्राप्त हुई थी जिसे ओढ़कर वह आग में बैठ जाती थी और आग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती थी।
इसी बात का फायदा उठाकर वह भक्त पहलाद को जलाने के लिए उसके साथ आग में बैठ गई। किंतु होलिका पर से चादर उड़कर भक्त पहलाद पर जा गिरी और होलिका जलकर राख हो गई तथा भक्त पहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ
इस प्रकार से होलका और हिरण कश्यप के गलत मंसूबों पर पानी फिर गया और हिरणयकश्यप अपनी बहन को खो बैठा।
इसी उपलक्ष में बुराई पर सच्चाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है और होली का त्योहार मनाया जाता है गौरतलब है कि यहां भागवत का आयोजन चौरे फ्यूल प्वाइंट के दीना चोरे ओमप्रकाश चौरे हरिकेश चौरे हरी प्रसाद चौरे राहुल चौरे सचिन चौरे के सानिध्य में आयोजित की जा रही है
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