बलिदान दिवस 18 सितम्बर 1858 पर विशेष

*गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकर शाह एवं उनके पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस 18 सितम्बर 1858 पर विशेष*
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*मूलचन्द मेधोनिया पत्रकार एवं पौता शहीद वीर मनीराम जी चीचली तहसील गाडरवारा जिला नरसिंहपुर मध्यप्रदेश*
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वह समय कैसा होगा जब अंग्रेजों द्वारा हमारे देश के राजा, महाराज और उनके सेनापति सहित महलों में सेवादारों पर भी जुल्म, ज्यदती अन्याय की पराकाष्ठा चरम पर थी। असहाय जनता को भी नहीं बख्सा जा रहा था।
सन 1857 में जबलपुर अंग्रेजी सेना में तैनात अंग्रेजों की 52 वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क यह इतना क्रूर था कि वह छोटे राजाओं, जमीदारों एवं जनता पर बहुत अन्याय व अत्याचार कर रहा था। उसका इतना बोलबाला था कि उसने जबलपुर को अंग्रेजों का मुख्य केन्द्रीय अड्डा बना लिया था। जो कि गुप्त जेल, गुप्त बंदी गृह और तरह तरह के अड्डे बना लिये थे, जहां पर उसके एक इशारे मात्र पर किसी की भी जान ले ली जाती थी। जिसके अत्याचार के खिलाफ गोंडवाना के राजा शंकर शाह ने उसका विरोध करने का निर्णय लिया। तथा अपनी सेना को सचेत किया कि अंग्रज कभी भी जनता पर हमला कर सकते है। किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है, मैं सबसे पहले उनका मुकाबला करुंगा।
गोंड राजा हमेशा निर्भिक थे, मौका पाकर कमांडर क्लार्क ने उन्हें बंदी बना लिया। किसी भी तरह से गोंडवाना राजा शंकर शाह को अवसर ही नहीं दिया, उनकी गुप्त बंदी ग्रह पर राजा को चार दिन तक रखा गया। पुत्र रघुनाथ शाह को भी बंदी बना लिया गया। इस प्रकार राजा व उनके पुत्र दोनों को बंदी बना कर पूरे गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने के लिए उन्होंने ऐसा काम किया कि किसी भी प्रकार से राजा अपना बड़ा फैसला न ले सकें।
अत: 18 सितम्बर में जबलपुर रेलवे स्टेशन के पास सार्वजनिक स्थान पर राजा व उनके पुत्र दोनों को अलग अलग तोप के मुंह पर बांध दिया। अंग्रेज कमांडर क्लार्क का संकेत मिलते ही तोंपे दाग दी गई।
गोंडवाना राजा एवं युवराज दोनों देश के खातिर शहीद हो गयें। शहीद होने से पहले राजा शंकर शाह जी ने अपनी प्रजा को एक कविता भी सुनाई वह कवि ह्रदय साम्राट थे, गोंडवाना साम्राज्य के वह ऐसे शहीद शिरोमणि हुये की उनकी कुरबानी सदियों सदियों तक इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में हमेशा याद रहेगी।
महान गोंडवाना साम्राज्य के राजाओं को शहीदी देने के बाद अंग्रेजों का मनोबल इतना बड़ गया था कि अब वह किसी भी गोंड राजा के राज पाट को कब्जा करने के लिए तत्पर रहने लगे। गढ़ मंडला के शासन को भी छीनते हुए। वह गोंडवाना की 52 गोंड राज्य किलों को बारी बारी से हथयानें लगें,
चौगान के गोंडवाना किलों को लूटा और राजा की धोके से हत्या कराई गई। चीचली के गोंड राजा जो 19 वीं सदी के महान गोंडवाना राजा थे। जहां के राजा विजय बहादुर शाह जी का लम्बी उम्र में निधन होने के बाद उनके युवराज नाबालिग थे। जो कि पढ़ाई के लिए बाहर गयें। बूढ़े राजा विजय बहादुर जी ने अपने बफादार सेवक जो उनके ही महल में रहते थे। उनके लिए ही गोंड महल की सुरक्षा की जबाबदारी दी थी। जो कि शूरवीर मनीराम अहिरवार संभाल रहे थे।
गोंड महल के राजा विहीन की सूचना मिलते ही अंग्रेजों की एक सेना महल को लूटने 23 अगस्त 1942 को दोपहर 12 बजे चीचली आ गई। जिनको महल की ओर आने से सेवादार मनीराम जी ने रोका न रुकने पर अंग्रेजों और शूरवीर मनीराम अहिरवार के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमें मनीराम ने अग्रजों को लहूलुहान कर घायल अवस्था में चीचली गांव छोड़ने को विवश किया।
अंग्रेजों ने गोंडवाना साम्राज्य के राजाओं और उनके महलों को लूटा और गोंड राजाओं की जान तक ली। हमारे देश में अनुसूचित जाति और जनजाति के वीर सपूतों ने आजादी के आंदोलन में जो शहादत दी है। जिसको शब्दों में जितना भी किया जाये वह कम ही है। शासन को चाहिए कि इन वर्गों के शहीदों को भी सम्मान दिया जाये। जैसे कि गोंडवाना साम्राज्य के सेवादार मनीराम अहिरवार जी को आज तक किसी भी प्रकार का सम्मान नही दिया है। यह तो नाइंसाफी होती है कि देश की आजादी में अपनी जान न्योछावर करने वाले सभी महान क्रांतिकारियों को सम्मान दिया जाना अतिआवश्यक है। गोंडवाना साम्राज्य के महान शहीद शिरोमणि राजा शंकर शाह जी एवं रघुनाथ शाह जी के बलिदान दिवस पर उनके चरणों में कोटि कोटि वंदन व श्रद्धा सुमन अर्पित है।

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