रात में पत्नी से लिपट के सो जाओ, और रात भर आलिंगन करो, सुबह उठो तो पत्नी खुश 😊❤️
**और पत्नी खुश तो मैं खुश, और मैं खुश तो पूरा परिवार खुश।** 🌸
शादी की उम्र हो रही थी मेरे लिए लड़कियाँ देखी जा रही थीं। मैं भी मन ही मन में काफी खुश था कि चलो कोई तो ऐसा होगा जिसे मैं अपना हमसफर बोलूंगा, जिसके साथ जब मन करे प्यार करूंगा। 💑 मेरी अच्छी खासी नौकरी है, घर में बूढ़ी माँ है, पापा हैं और इतनी कमाई तो हो ही जाती है कि अपनी पत्नी का खर्चा उठा सकूं। ये सारी बातें सोच-सोच के खुश होता था। माँ की उम्र भी हो गई थी, तो एक प्वाइंट ये भी लोगों को बताता कि यार मुझे शादी की कोई जल्दी नहीं, ये तो माँ हैं जिनकी उम्र निकल रही है उनके लिए शादी करनी है। माँ ने भी मेरी बात मान ली, लेकिन मन ही मन में तो मेरी भी चाहत थी कि मेरी शादी हो जाए। 💍
मेरी शादी दिव्या से फिक्स होती है। मैंने कहा, दिव्या, हम आगे जाकर बहुत अच्छी जिंदगी जीने वाले हैं, क्योंकि मेरे घर में कोई नहीं है। बस तुम्हें मेरे माँ-बाप का ध्यान रखना होगा। दिव्या ने तुरंत कहा, “आपके माँ-बाप भी मेरे माँ-बाप हो जाएंगे शादी के बाद।” दिव्या की अच्छी बातों से मुझे दिन-रात और ज्यादा प्रेम होने लगा था। कभी परिवार संभालने की बातें, कभी शरारत भरी रोमांटिक बातें सुनकर मैं बहुत खुश था। मानो एक परफेक्ट जिंदगी मुझे मिल गई हो। 💕💑
शादी के बाद हम दोनों घूमने गए, सब कुछ बहुत अच्छा था। ना जाने क्यों इस पल हम दोनों को ऐसा लगता था कि बस हम एक-दूसरे से लिपटे रहें। जिनकी शादी हुई होगी वे समझ पा रहे होंगे कि मैं क्या बोलना चाहता हूँ। घूमने के बाद जब घर आया तो ज्यादातर समय ऑफिस के लिए ही होता था। छुट्टी में जब कभी मम्मी-पापा बाहर जाते तो दिव्या मैडम मूड में रहती थी। कब, क्या, कहाँ, कैसे कुछ हो जाता था पता नहीं चलता था। 😍🌙
मुझे अब लगने लगा था, एक ऐसी पत्नी मिली है, जो घर की जरूरतों को समझती है, साथ में मेरी शारीरिक जरूरतों का भी ध्यान रखती है। संबंध बनाने के लिए खुद ही पहल करती है, और यदि कभी मैं कर दूं तो मना नहीं करती बल्कि पूरा साथ देती है। अब जिंदगी में इससे अच्छा क्या होगा? फालतू में मेरे दोस्त बोलते थे कि शादी मत करो, लाइफ खराब हो जाती है।
हमारी शादी को 2 महीने हुए थे, दिव्या ने कहा, “अजी, मुझे साड़ी में दिक्कत होती है, क्या मैं घर पर सूट पहन सकती हूँ?” मैंने तुरंत कहा, “हाँ, क्यों नहीं पहन सकती हो, चलो अभी दिलाता हूँ।” हम दोनों बाजार से घर आते हैं। मम्मी ने उसके हाथ में सूट देखा, कुछ बोली नहीं। अगली सुबह जब वो नहाकर सूट पहन कर निकली तो मम्मी ने कहा, “तुमने सूट क्यों पहन लिया, हमारे यहां शादी के 6 महीने तक नई बहू को सिर्फ साड़ी पहननी होती है। रोज कोई ना कोई मेहमान देखने आता है, सबके सामने सूट पहन कर जाओगी तो अच्छा नहीं लगेगा। और बार-बार दिन भर कपड़ा बदलना भी अच्छा नहीं है।”
इस पर दिव्या ने मां को सॉरी कहा और बोली, “मैंने तो इनसे पूछ के लिया था।” तभी मां बोलती हैं, “ये कौन होता है ये सब डिसाइड करने वाला? अभी मैं हूँ तो मैं करूंगी, जब मैं मर जाऊं तो जैसे मन वैसे रहना।” इसे सुनने के बाद मुझे पहली बार घर में अपनी औकात का पता चला। 😔
मासूमियत से दिव्या मेरी तरफ देख रही थी शायद यह बताना चाह रही थी कि मेरी वजह से उसे डांट पड़ गई। पत्नी प्रेम में लिप्त होकर मैंने मां से बोल दिया, “अरे मम्मी, इसकी गलती नहीं है, मुझसे पूछी थी वो।” मां ने तुरंत बोला, “2 महीना हुआ नहीं और आगए पत्नी का पक्ष लेने। इस घर में मालिक मैं हूँ या तुम हो?” अब मेरे पास कोई जवाब नहीं था। हम दोनों एक-दूसरे को देखते रहे और अंदर चले गए।
इस बात से दिव्या डर गई थी और अब वो हर काम मां से पूछ कर करने लगी। लेकिन मां के लिए यह भी एक आफत था। अब उनका कहना था कि तुम 28 साल की हो, तुम्हें खुद बुद्धि होनी चाहिए क्या करना है क्या नहीं। हर चीज के लिए मेरे पास मत आया करो। लेकिन अब इस बार दिव्या भी चिढ़ गई, पर मां से कुछ नहीं बोली।
जब मैं ऑफिस से आया तो अंदर आते ही मां बोलने लगी, “तुम्हारी धर्मपत्नी को बुद्धि नाम की चीज नहीं है।” मैंने मां को समझाया कि जाने दो, सीख जाएगी। थोड़ा समय दो। इस पर मां ने मुझसे मुंह फुला लिया और उदास रोते हुए कहा, “तुम बदल गए हो।” और पीछे से धीरे-धीरे मेरे पिता जी देखते हुए हंस रहे थे, मानो ऐसा जताने कि उन्होंने पहले ही भविष्य देखा हुआ था। 😅
इसके बाद कमरे में गया तो वहां दिव्या का मुंह खुला हुआ था। कमरे में घुसते ही उसने मुझसे कहा, “मैं कितनी भी कोशिश कर लूं, मां मुझसे कभी खुश नहीं होती। हर चीज की एक सीमा होती है और यह सारी बातें सीमा से भी ऊपर हैं।”
मैंने उसे पकड़ा और बोला, “घबराओ मत, थोड़ा समय लगेगा मां को संभालने में। क्योंकि तुम्हारे अलावा उनका कोई और नहीं है, वह तुम्हें अपना मानती हैं इसलिए तुमसे ऐसी बातें करती हैं। चलो चल के नीचे खाना खाते हैं, बहुत तेज भूख लगी है।” ऐसा बोलकर हम नीचे आते हैं और मैं मन में ही सोचता हूं कि दिव्या को तो मैं धीरे से किसी भी तरह से मना लूंगा। एक रात की बात है, एक बार जहां लिपट के सोया सब कुछ सुबह ठीक हो जाएगा। मां के लिए कुछ सोचना पड़ेगा।
नीचे खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में जाते हैं। दिव्या अभी भी थोड़ी नाराज लग रही थी। मैंने उसे बोला, “क्यों मन की बात का इतना बुरा मानती हो?” उसने तुरंत मुझसे कहा, “मेरी कोई गलती भी नहीं होती और हर चीज के लिए मुझे दोषी ठहराया जाता है। मैं कुछ अच्छा भी करने जाती हूं तो उसमें भी मेरी बुराई निकल जाती है।”
मैंने उसे जोर से गले लगाया और बोला, “ऐसा कुछ नहीं है, समय के साथ सारी चीज ठीक हो जाएगी।” और अब बारी थी कुछ करने की, लेकिन उसने मुझे अपने से दूर कर दिया और बोला, “मेरा मन नहीं है।” अब जो मुझे लगता था कि एक रात लिपट के सोने से अगली सुबह सब कुछ ठीक हो जाएगा, यह बातें झूठी समझ आने लगीं।
धीरे-धीरे हर छोटी-छोटी चीज पर घर में लड़ाई-झगड़ा होने लगे। मां को दिव्या की कुछ चीजें नहीं पसंद थीं और दिव्या को मां की बहुत सारी चीजें पसंद नहीं आती थीं। दिव्या का कहना था कि घर उसका भी है और हर छोटी चीज के लिए परमिशन लेना उसे ठीक नहीं लगता। उधर मां का कहना था कि इस गृहस्थी को मैंने बसाया है और तुम्हें हैंडोवर किया है, इसलिए अभी भी इसकी मालकिन मैं ही हूं। तुम्हें जो भी करना है, मुझसे पूछकर करो।
दोनों अपनी बात पर बिल्कुल सही थे। एक तरफ दिव्या, जिसके साथ मुझे पूरी जिंदगी बितानी थी, दूसरी तरफ मेरी मां, जिन्होंने इस गृहस्थी को संभाला था, मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया था।
लेकिन इन दोनों की लड़ाई का असर सीधा-सीधा मेरे ऊपर दिख रहा था और मैं पिसता जा रहा था। धीरे-धीरे बात कहीं ज्यादा बढ़ने लगी और घर में प्रतिदिन लड़ाई-झगड़े की नौबत आ गई। अब मुझे भी लगने लगा था कि जो मेरे दोस्त बोलते थे कि शादी करने से बहुत ज्यादा खुशी नहीं मिलती बल्कि लाइफ में टेंशन आता है, वे क्यों बोलते थे।
इसी तरह एक दिन अत्यधिक बात बढ़ने पर मैं रात को दोनों के कमरे में गया। सबसे पहले मैं मां के कमरे में गया और मां को समझाया कि देखो मां, तुम दोनों के झगड़े की वजह से मेरा करियर खराब हो रहा है और मैं ठीक से रह नहीं पा रहा हूं। मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता और ना मैं दिव्या को छोड़ सकता हूं, तो इसलिए थोड़ी नरम हो जाओ। जो चीज जैसे चल रही है, चलने दो। इस बार मैं थोड़ा कठोर था।
मां से तुरंत बोलने के बाद मैं अपनी पत्नी के कमरे में गया और मैं यही बात उससे भी कही कि देखो, मां की उम्र हो चुकी है। यदि तुम यह सोच रही हो कि मां अपने आप को बदल सकती हैं, तो यह होना मुमकिन नहीं है। बदलना तुम्हें खुद को होगा जिसमें मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा। मैं ना तुम्हें छोड़ सकता हूं क्योंकि तुम मेरा भविष्य हो, और ना मैं अपनी मां को छोड़ सकता हूं क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर इस लायक बनाया है। तो कोई बीच का रास्त
ा निकालो और घर में शांति से रहो।
यह बात होने की कुछ दिन बाद तक तो चीजें ठीक थीं, लेकिन धीरे-धीरे कुछ समय बाद फिर झगड़ा होना शुरू हो गया। और इस बार मैंने दोनों को आमने-सामने बैठाकर कहा कि लास्ट टाइम मैंने आप लोगों से बात की थी पर उसका कोई भी मतलब नहीं निकला। अगर आज के बाद फिर घर में कभी झगड़ा होता है, तो मैं यह घर छोड़कर चला जाऊंगा। मैं कहीं बाहर रहूंगा और हर महीने की सैलरी आधी मां को और आधी दिव्या को दे दिया करूंगा। इस बात का दोनों के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
हफ्ता बीतता है और घर में फिर झगड़ा होता है। इस बार समय था एक्शन लेने का। मैं झगड़ा होते हुए देखता हूं, पर इस बार कुछ भी नहीं बोलता। मैं ऑफिस जाता हूं और इस बार देर रात तक ऑफिस में ही रुकता हूं। जब दिव्या मुझे फोन करती है कि आप कहां हैं तो मैं उनसे कहता हूं कि मुझे नहीं पता मैं कहां हूं। कुछ देर बाद मां का फोन आता है और मां भी मुझसे यही पूछती हैं कि तुम कहां हो, इतना देर क्यों हो रहा है? मैंने मां को भी बोल दिया कि मैं कहां हूं, मुझे भी नहीं पता।
इस दौरान मैं अपने एक अविवाहित दोस्त के घर पर रुका हुआ था, जिसके बारे में मेरे घर में किसी को नहीं पता था। सिर्फ मेरे पिता जानते थे। जब दिव्या का फोन आता है या मां का फोन आता तो मैं उनसे नॉर्मल बात करता और यह बोल देता कि कई बार मैंने उन लोगों को समझाया है कि घर में लड़ाई-झगड़ा मत करो जिससे घर की शांति भंग होती है। इस वजह से मैं अब घर छोड़कर बाहर आ गया हूं और हमेशा के लिए बाहर हूं।
यह सुनने के बाद मेरी मां घबरा गईं, दिव्या घबरा गई कि आखिर ऐसा क्या हो गया। और ये दोनों मुझे फोन करके समय-समय पर यह एहसास दिलाते कि दोबारा उनसे यह गलती कभी नहीं होगी। मुझे जल्दी से जल्दी घर आ जाना चाहिए। मां ने तो यह तक बोल दिया कि “तू क्या चाहता है, मैं बिना पोते का मुंह देखे मर जाऊं?” और दिव्या फोन करके मुझे यह बोलती कि “आपकी मां आपके लिए बहुत परेशान हैं, मेरे लिए ना सही, कम से कम उनके लिए तो वापस आजाइए।”
मुझे यह देखकर बहुत खुशी हो रही थी कि दोनों लोग मेरे चक्कर में एक-दूसरे के बारे में सोच रहे थे। बस फर्क इतना था कि दिव्या खुलकर मुझे बोल रही थी, पर मां इशारों में बोल रही थी।
एक हफ्ते बाद मैं घर आता हूं और घर जाकर सबसे पहले मां को देखता हूं और पिताजी से मिलता हूं। पापा मुझे बताते हैं कि एक हफ्ते से घर में काफी शांति है और उम्मीद है आगे भी ऐसा झगड़ा नहीं होगा। और यकीन मानिए, उस दिन के बाद से ऐसा झगड़ा दोबारा कभी नहीं हुआ। मेरी मां मेरी पत्नी के साथ अच्छे से रहती हैं और मेरी पत्नी मेरी मां के साथ अच्छे से रहती हैं। 😊
आज दिव्या के साथ मुझे पूरे 5 साल हो चुके हैं और हमारा एक बेटा भी है। लेकिन आज हमारे घर में गृहकलह नाम की चीज नहीं है और इसका पूरा श्रेय मैं अपने पिता को देना चाहता हूं। 🙏 क्योंकि उस दिन जब हम पेंशन का काम करने कचहरी गए थे, तो उन्होंने ही मुझे यह आईडिया दिया कि “तुम एक हफ्ते के लिए घर से बाहर भाग जाओ और बोल देना कि अब तुम दोबारा लौट के कभी नहीं आओगे।”
मुझे पता है मेरा यह कदम काफी ज्यादा हास्यास्पद और कुछ लोगों को बेकार लगेगा। पर यकीन मानिए, इस चीज ने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर मैंने आज यह कदम न उठाया होता, तो शायद हर घर की तरह मेरे घर में भी रोज लड़ाई-झगड़ा हो रहा होता।
भारत में शादी सिर्फ लड़के और लड़की की नहीं होती बल्कि लड़की और लड़के की फैमिली की भी होती है। शादी के बाद सिर्फ पत्नी के साथ जी भर के प्यार करने से खुशी नहीं प्राप्त होती। असली खुशी तब मिलती है जब आपका परिवार भी खुश हो। और परिवार को खुश करने की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की नहीं होती बल्कि पूरे परिवार की होती है। इसमें आप, मैं, आपकी मां, आपके पापा और लड़की सभी शामिल होते हैं।
मेरी यह स्टोरी आप लोगों को कैसी लगी, मुझे कमेंट करके जरूर बताइएगा। 😊❤️