नई पीढ़ी को नहीं है पैसों की अहमियत….,

जितेन्द्र मालवीय

शायद इसलिए नई पीढ़ी को पैसे की बर्बादी नहीं है….,फोनपे, गूगलपे के कारण पैसे की दरें समझ में नहीं आती, मोबाइल में अंक के सामान दिखते हैं,
पैसे वाले व्यक्ति जेब खर्च के लिए महीने में एक बार बैंक से पैसा निकालता है और बाकी पैसे बैंक में सुरक्षित रहते थे,,,
ओर आज उसके रीच बैंक में जमा उसका एक पैसा पर है इसलिए आज का खर्च भी वैसा ही हो रहा है,
हम सीए है लोगो के विचार ही काम, लोगो के बैंक स्टेटमेंट आज 70-100 पेज तक जा रहा हूँ,
मैं छोटा हूँ हमें इस पर विचारक की अभिव्यक्ति है।

जैसे पहले हम छोटे थे कभी कुछ सामान लेकर जाते थे जेब में 500 लेकर और कुछ सामान अगर 600-700 के पैसे थे और बैंक में होते थे तो आदमी उसने खड़ा होकर सोचा कि क्या जरूरत है क्या लेने की?
उदाहरण के तौर पर आज आप उदाहरण के तौर पर 10-20 पीयर की दुकानें लेकर वापस आ गए हैं और यहां तक ​​कि जो बिस्किट ले गए हैं और जहां 20 पीकियां थीं, आपको 200-300 लग रहे हैं क्योंकि आप आज पूरी तरह से लाइफ जंप कर चुके हैं। किसी कंपनी को जेब में लेने के लिए फिर से घूम रहा है,
पर आज वो जेब में बैंक लेकर घूम रहा है, फ़िज़ूल खर्च इतना बढ़ रहा है जैसा कि बताया नहीं गया है,

भारत को बचत का देश कहा जाता था, यहां मां बाप दो निवाले कम खाते थे की अगली पीढ़ी के लिए चार पैसे जोड़ दे आज वह विचार आधुनिकीकरण की बाली चढ़ा जा रहा है,
आशा करते हैं आप सभी इसपर विचार जरूर करेंगे 🙏🏼
🙏 🏼अपना अधिकांश गुप्त सचिवालय रुपए और स्थानीय उपकरणों के साथ ही करें।🙏🏼

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