मैं वर्षभर स्वयं को स्वयंसेवक कहता हूं, समाज में संघ की बात भी करता हूं ,गणवेश भी पहनता हूं, शाखा भी कभी-कभी जाता हूं, समाज के लोगों को स्वयंसेवक बनने के लिए प्रेरित भी करता हूं, जब प्रचारक जी या बड़े भाई साहब आते हैं तो उनको बताता हूं कि मैं इतने वर्षों से स्वयंसेवक हूं। स्टेटस में अपने गणवेश वाली फोटो भी लगाता हूं, और परिचय में अपना परिचय भी देता हूं कि मैंने प्राथमिक वर्ग किया है मैंने प्रथम वर्ष किया है ,परम पवित्र भगवा ध्वज को अपना गुरु भी बताता हूं।
*लेकिन क्या मैंने वर्ष भर में एक बार आने वाले संघ के महत्वपूर्ण उत्सव गुरु पूजन व समर्पण किया? नहीं किया ।*
तो फिर मेरा स्वयंसेवक होने का मतलब ही क्या? जब मैंने अपने गुरु की पूजा नहीं किया, गुरु को समर्पण नहीं किया।
समर्पण का अर्थ केवल धन, रुपये से नहीं है हम अपने गुरु को समय का भी समर्पण कर सकते हैं ,मन का भी समर्पण कर सकते हैं लेकिन *एक स्वयंसेवक का गुरु पूजन होना बहुत ही आवश्यक है।*
*दायित्ववान कार्यकर्ता एवं सक्रिय स्वयंसेवकों का दायित्व*
सोचिए मैं दायित्ववान स्वयंसेवक हूं लेकिन मैं प्रचारक जी के फोन का इंतजार कर रहा हूं कार्यवाह जी के फोन का इंतजार कर रहा हूं कि वह फोन करके मुझे बोले कि गुरु पूजन उत्सव मनाना है , हो सकता है किसी कारण बस यह लोग व्यस्त हो या मुझे फोन नहीं लगा हो , मैं स्वयं भी तो गुरु पूजन उत्सव का आयोजन कर सकता हूं ,*जिस बस्ती ,गांव ,नगर में मैं रहता हूं वहां ऐसे भी स्वयंसेवक हैं जो ज्यादा सक्रिय नहीं है,प्रतिदिन शाखा नही जाते, तो उनका गुरु पूजन कौन करवाएगा?* मैं ही तो हूं जो ऐसे स्वयंसेवकों को सूचना देकर उनका गुरु पूजन करवाऊँगा।
अगर ऐसे स्वयंसेवकों का गुरु पूजन नहीं हो पाता तो मैं भी उसका दोषी हूं, क्योंकि समय रहते मैंने अपने ग्राम बस्ती नगर में गुरु पूजन उत्सव का आयोजन नहीं किया और विभिन्न स्वयं सेवकों को सूचना नहीं दी।
अभी भी समय है कुछ दिन बचे हैं गुरु पूजन के लिए, मैं उठूंगा ,घर से निकलूंगा, स्वयंसेवकों को सूचना दूंगा और उनका गुरु पूजन अवश्य करवाऊंगा।
*तब मैं सही स्वयंसेवक कहलाऊंगा।*
भारत माता की जय
भवदीय
स्वयंसेवक