योग अर्थात स्वयं को जानना

योग अर्थात स्वयं को जानना – नवीन वागद्रे
हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। पहला अंतराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को पूरी दुनिया में मनाया गया था। योग हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। पिछले कई सालों में यह लोगों की लाइफस्टाइल का हिस्सा भी बना है, जिससे कई लोगों ने खुद को काफी फिट-फाइन रखा है। योग सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी माना गया है। यह शरीर को लचीला बनाता है और रोग-

प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। यही कारण है कि आज की तारीख में सिर्फ आम लोग नहीं, बल्कि खास लोगों ने भी खुद को फिट रखने के लिए योग की मदद ली है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि योग हमारे लिए कितना अहम है। इसी बात को ध्यान रखते हुए हर साल जून के महीने की 21 तारीख को इंटरनेटशनल योग डे मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य योग के प्रति लोगों के बीच

जागरूकता फैलाना है। इंटरनेशनल योग दिवस 2023 की थीम है ‘मानवता’। योग के जरिए हम भौतिक और आध्यात्मिक लाभ हासिल कर सकते हैं। आज के युवा पीढीयो को योग के वास्तविक महत्व को समझना बहुत जरूरी हो गया है , लगभग 10 मे से 4 व्यक्ति ही योग के वास्तविक महत्व को समझते है अन्य 6 व्यक्तियों को लगता कि योग अर्थात आसन,

सूर्यनमस्कार इत्यादि जबकि योग का गहन अर्थ होता है आत्मा का परमात्मा से मिलन किसी भी दो चीजों का मिलन। योग शब्द संस्कृत के युज से लिया गया है। जब किसी भी 2 सात्विक चीजो का मिलन होता है चाहे वह आत्मा से परमात्मा का मिलन हो चाहे किसी सात्वीक कार्य मे आपका और आपके लक्ष्य का मिलन हो यही योग कहलाता है। योग स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। भारतीय ज्ञान परंपरा मे योग का बहुत महत्व है। प्राचीन काल से ही योग हमारी जीवन शैली के अंग के रूप में

समाहित है। योग के महान दार्शनिक – महर्षि पतंजली ने कहा – योग चित्त वृत्ति निरोधः अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है। आपने महसूस किया होगा कि मन प्राय: अस्थिर रहता है, यह अस्थिरता हमारी चंचल वृत्तियो के कारण है। जिस वस्तु के प्रति हम जैसा सोचते है या व्यवहार करते है उसे वृत्ति कहते हैं। आज वर्तमान समय मे विधार्थीयों की मुख्य कमजोरी है कि वह 15-20 मिनट अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते चाहे वह पढाई हो या अन्य कोई कार्य 20 मिनट से ज्‌यादा अपने ध्यान को केन्द्रित नहीं कर पाते और किसी भी चीजों को भूलना उनकी आदत बन चुकी है लेकिन हम योग मे ध्यान, व्यायम, आसन,

प्राणायाम, त्राटक, बंध और मुदाओं द्वारा हमारे मानसिक स्वास्थ को बेहतर कर सकते हैं। श्रीमद् भगवत गीता के अनुसार – योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्मों में कुशलता ही योग है । भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवतगीता मे योग को परिभाषित करते हुए कहा है कि कर्मों को पूर्ण कुशलता पूर्वक किया जाए और वे आसक्ति रहित हो । समत्वं योग उच्यते अर्थात समत्व भाव ही योग है। समत्व का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियो सुख-दुख लाभ हानि मे सम बने रहना या एक जैसे बने रहना ही योग है . प श्री राम आचार्य शर्मा के अनुसार स्वयं को जानना ही योग है।

“*बीमारी को दूर भगाता है योग* “
योग मे हम आसनों, मुद्रा, बन्ध व षटकर्म के द्वारा , बीमारीयों को दूर भगा सकेत है व शरीर को स्वस्थ रख सकते है षटकर्म अर्थात- धौति, बस्ती, नेति, नौली , त्राटक कपालभाती इत्यादि द्वारा हम शरीर को भीतर से साफ़ करते है और रोग मुक्त होते है। योग कई बीमारियो को भी ठीक करने में कारगर है जैसे कि अस्थमा, मोटापा, हाइपरटेंशन, माइग्रेन इत्यादि ।

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