paryushan festival सत्य की विजय होती है … असत्य की नहीं – ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली

 युवा विद्वान बाल ब्रह्मचारी श्री राजेश जी बरेली  सत्य के समान संसार में दूसरा कोई तप नहीं है । सत्य मार्ग पर चलने वाला जीव परमात्मा की प्राप्ति कर सकता है । सत्यनिष्ठ व्यक्ति ही आत्मा को पहिचान सकता है । भारत की पवित्र भूमि धर्मात्माओं से खाली नहीं है , जो भव्य जीव अपने जीवन में सत्य को स्वीकार करता है , वही सत्य धर्म की यथार्थता को समझ सकता है । भारतीय वसुंधरा पर ऐसे अनेकों अध्यात्मवादी महापुरुष हुए हैं , जिन्होंने अपने जीवन में आत्म कल्याण का लक्ष्य बनाया और चल पड़े मुक्ति मार्ग पर सत्य शब्दों में नहीं बंधता , वह असीम है , अदृश्य है । सत्य कालातीत और सीमातीत है । जिस प्रकार मनुष्य का आभूषण गुण है , शरीर का आभूषण गहने हैं , उसी प्रकार वाणी का आभूषण सत्य है , सत्य ही में परमात्मा का निवास है अतः सदैव सत्य बोलना चाहिये । सत्य के अनेक रूप हैं- सर्व प्रथम सत्य धर्म मनुष्य के जीवन में सत्य वचन के रूप में प्रकट होता है । झूठ बोलना पाप है । एक झूठ को छिपाने के लिये मनुष्य अनेक झूठ बोलता है और झूठ के पीछे छिपे रहस्य के खुल जाने के भय से हमेशा भयाक्रांत , शंकित बना रहता है । अनेक झूठ बोलने पर कोई झूठ सत्य नहीं होता , सत्य से जीवन सुखी बनता है , सत्य से प्रतिष्ठा मिलती है , यश बढ़ता है जबकि असत्य बोलने से अपयश होता है और एक झूठ से अनेक झूठ पैदा हो जाते हैं इसलिये हमेशा सत्य के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को उन्नतशील बनाना चाहिये । जो मनुष्य सत्य की कसौटी पर खरा उतर जाता है , उसका जीवन ही धर्ममय सफल और सार्थक जीवन होता है । आचार्य श्रीमद् जिन तारण स्वामी ने कहा है कि सत्य को स्वीकार करना , असत्य का प्रतिपादन करना भूल प्रमाद वश भी असत्य कथन न करना सत्य धर्म है । संत तुलसीदास जी ने इसी सत्य की विशेषता को बताते हुए कहा है – सांच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप जाके हृदय सांच है , ताके हृदय आप । सदा सत्य बोलना तपस्या करना है , और झूठ बोलना पाप है , जिसका हृदय निर्मल है , भावों में शुचिता है वही सत्य के मार्ग पर चल सकता है । जो रात दिन झूठ बोलता है , धोखा , फरेव करता रहता है , वह कभी भी धर्म के स्वरूप को नहीं समझ सकता । संसार में सत्य की विजय होती है । भारत की आत्मा के दर्शन सत्य में ही होते हैं । अध्यात्म प्रधान भारत में सत्य की अनूठी दुनियाँ है किन्तु हम सत्य के निकट होकर भी सत्य से परिचित नहीं हो पा रहे हैं । असत्यता से मनुष्य का पतन और सत्य से उन्नति का मार्ग बनता है । सत्य हृदय में निवास करने वाला परमात्मा होता है । इस सत्य का दर्शन जीवन की सार्थकता का संदेश है । संतों ने सत्य की साधना में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया । भारत के लोगों का कर्तव्य है कि उन्हीं संत महापुरुषों के पथानुगामी बनकर सत्य के वास्तविक स्वरूप को स्वीकार करें । यही अध्यात्म मार्ग है , जो भारतीय संस्कृति का प्राण है । असत्य से ऊपर उठकर सत्य की पहचान करना और सत्यमय जीवन जीना यही जीवन का सार है । सत्य ही जीवन का परम आश्रय है । सत्य शब्द जिह्वा पर आते ही महापुरुष राजा हरिश्चंद्र का स्मरण आ जाता है , • जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिये सर्वस्व न्योछावर कर दिया था । जो सत्य का पालन करेगा , धर्म उसकी रक्षा करेगा । धर्मो रक्षति रक्षतः अर्थात् धर्म रक्षकों की रक्षा करता है ।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.