*A hymn composed by Lord Shankaracharya, believed to be an incarnation of Lord Shankar :एक स्तुति, जो भगवान शंकर के अवतार माने गए भगवान शंकराचार्य द्वारा रची गई*

आज के समय में हर मनुष्य अनेक परेशानियों से घिरा हुआ है। ऐसे समय में विचलित हो जाता है और सोचता है कि काश! कोई ऐसा मंत्र या पाठ मिल जाए जिससे उसके जीवन की सभी परेशानियां दूर होकर वो शांतिपूर्ण तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें।
एक स्तुति, जो भगवान शंकर के अवतार माने गए भगवान शंकराचार्य द्वारा रची गई है इसलिए इसे साक्षात शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र भी माना जाता है, जो ‘वेदसार स्तव’ के नाम से प्रसिद्ध है। कोई भी मनुष्य प्रतिदिन या सिर्फ प्रति सोमवार सुबह-शाम भगवान शिव की पूजा कर इसका पाठ और स्मरण करता है, वह मनुष्य जीवन के समस्त सुखों को प्राप्त करता है।

शिव पूजन की सरल विधि :

* प्रतिदिन सुबह शिवलिंग पर जल, दूध या पंचामृत स्नान के बाद फूल और श्रीफल अर्पित करें। तत्पश्चात शाम के समय भगवान भोलेनाथ की पंचोपचार पूजा में बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़ा, अक्षत, सफेद एवं केसर चंदन तथा मिठाई का भोग लगाएं और मंत्र स्तुति का पाठ कर प्रसाद ग्रहण करें।

मंत्र ;- ॐ ह्रीं नमः शिवाय ( 11 माला जाप )

स्तुति ;-

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप:
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यस्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ।।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।11।

सद विचार , सद वाणी , सद कर्म का नियम धारण करे और मन , वचन , कर्म से किसीका बुरा न चाहे , बुरा न बोले , बुरा न करे तो विश्वका कोई भी मनुष्य शिवपूजा के इस विधान से शतप्रतिशत जीवन मे हरेक प्रकार से सुख संपति धन धान्य ऐश्वर्य सुसन्तति सुआरोग्य प्राप्त करता है और अनंतकाल शिवलोक प्राप्त करता है । परम कृपालु महादेव आप सभी धर्मप्रेमी जनो पर सदैव कृपा बरसाए

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