Dol Gyaras today डोल ग्यारस आज,4 बजे होगा जलवा पूजन,भगवान कृष्ण का डोला जाएगा नदी

डोल ग्यारस का पर्व नगर में अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। परंपरा अनुसार दुर्गा चौक के सत्यनारायण मंदिर से डोल निकाला जाएगा। पंडित मनोहर लाल शर्मा ने बताया कि आज 4 बजे से ढोल बाजे की गूंज पर भगवान कृष्ण की झांकी सॉलिढाना नदी पर ले जाएगी ले जाई जाएगी। जहां परंपरा अनुसार पूजन अर्चन किया जाएगा। उसके बाद मंदिर में श्रद्धालु प्रभु श्री कृष्ण के बाल रूप का पूजन अर्चन करेंगे।

कृष्ण जन्माष्टमी के बाद आने वाली एकादशी को डोल ग्यारस कहते हैं। श्रीकृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जल पूजन (घाट पूजन) किया था। इसी दिन को ‘डोल ग्यारस’ के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। कहीं इसे सूरज पूजा कहते हैं तो कहीं दश्टोन पूजा कहा जाता है। जलवा पूजन को कुआं पूजा भी कहा जाता है। इस ग्यारस को परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी एकादशी, वामन एकादशी आदि के नाम से भी जाना जाता है।
डोल ग्यारस का महत्व : इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है। इस दिन को व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। इसीलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहा जाता है।

क्यों कहते हैं डोल ग्यारस : इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसीलिए इसे डोल ग्यारस भी कहा जाने लगा।

हिन्दू उपवास में ग्यारस या एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व होता हैं. कहते हैं जीवन का अंत ही सबसे कठिन होता हैं. उसे सुधारने हेतु एकदशी का व्रत किया जाता हैं. उन्ही में से एक हैं डोल ग्यारस.

डोल ग्यारस महत्व 
इसका महत्व श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था. एकादशी व्रत सबसे महान व्रत में आता हैं, उसमे भी इस ग्यारस को बड़ी ग्यारस में गिना जाता हैं.

इसके प्रभाव से सभी दुखो का नाश होता है, समस्त पापो का नाश करने वाली इस ग्यारस को परिवर्तनी ग्यारस, वामन ग्यारस एवं जयंती एकादशी भी कहा जाता हैं.
इसकी कथा सुनने से ही सभी का उद्धार हो जाता हैं.
डोल ग्यारस की पूजा एवम व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ के तुल्य माना जाता हैं.
इस दिन भगवान विष्णु एवं बाल कृष्ण की पूजा की जाती हैं, जिनके प्रभाव से सभी व्रतो का पुण्य मनुष्य को मिलता हैं.
इस दिन विष्णु के अवतार वामन देव की पूजा की जाती हैं उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल मिलता हैं.
डोल ग्यारस के उपलक्ष मे एक और कथा कही जाती हैं :
इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा. इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नये कपड़े पहनायें एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यो में सम्मिलित किया. इस प्रकार इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता हैं.

इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था. उसी प्रकार आज तक इस दिन मेले एवम झांकियों का आयोजन किया जाता हैं. माता यशोदा की गोद भरी जाती हैं. कृष्ण भगवान को डोले में बैठाकर झाँकियाँ सजाई जाती हैं. कई स्थानो पर मेले एवम नाट्य नाटिका का आयोजन भी किया जाता हैं.

फलाहार ककड़ी का
जलझूलनी एकादशी व्रत का महत्व
प्रत्येक वर्ष शुक्ल और कृष्ण पक्ष में एकादशी व्रत रखा जाता है। साल में पड़ने वाली इन एकादशी को विभिन्न नाम से जाना जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी और डोल ग्यारस भी कहते हैं। इस बार जलझूलनी एकादशी का व्रत 06 सितंबर, मंगलवार को रखा जाएगा। इस एकदशी व्रत को दौरान भी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है। जल झूलनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की अर्चना की जाती है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक परिवर्तिनी एकादशी या जलझूलनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है और सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।आइए जानते हैं कि जलझूलनी एकादशी कब है, इसका महत्व और पूजा विधि के बारे में।
जलझूलनी एकादशी व्रत का महत्व
जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- सितम्बर 06, 2022, मंगलवार, प्रातः 05:54 से
एकादशी तिथि समाप्त -सितम्बर 07, 2022, बुधवार प्रातः 03:04 बजे
जलझूलनी/परिवर्तिनी एकादशी पारण समय- 8 सितम्बर, गुरुवार, प्रातः 06:02 से 08:33 तक
जलझूलनी एकादशी व्रत का महत्व
इस दिन है जलझूलनी एकादशी का व्रत
जलझूलनी एकादशी का महत्व
स्कन्द पुराण के अनुसार चातुर्मास के दौरान जब श्री विष्णु योग निद्रा में जाते हैं, उसके बाद जलझूलनी एकादशी के दिन वह सोते हुए करवट बदलते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस एकादशी व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस व्रत का माहात्म्य युधिष्ठिर को बताया है। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। मान्यता यह भी है को जो भक्त भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों में पूजन का फल प्राप्त होता है।
जलझूलनी एकादशी की व्रत विधि
परिवर्तिनी/जलझूलनी एकादशी व्रत के नियम का पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही आरंभ कर देना चाहिए।
एकादशी के दिनप्रातः स्नानआदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और इसके बाद भगवान वामन की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें
सबसे पहले भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं।
स्नान कराने के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों पर छिड़के और उस चरणामृत को पिए।
इसके बाद वामन देव को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करे।
इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और भगवान वामन की कथा सुनें।
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

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