आज ग्यारहवां अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस, दुनिया में कुल बाघों का 80 प्रतिशत भारत में

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आज ग्यारहवां अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य बाघों के प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए वैश्विक प्रणाली को बढ़ावा देना और बाघ संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना तथा सहयोग बढ़ाना है।
बाघ को देश का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है। वैज्ञानिक रूप से इसे पैंथेरा टाइग्रिस के रूप में जाना जाता है। बिल्ली प्रजाति के परिवार में बाघ सबसे बड़ा जानवर है। दुनिया में बाघों की कई प्रजातियां हैं। 2010 में बाघों की संख्या में कमी आना चिंता का विषय बन गया था।
देश में बाघ अभयारण्य 1973 में स्थापित किए गए थे और इनके संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण बनाया गया है, जो इनकी देखरेख करता है।
इस समय देश भर में 20 राज्यों में कुल 51 बाघ अभ्यारण्य हैं। 2018-19 की गणना के अनुसार भारत में दो हजार 967 बाघ हैं। दुनिया में कुल बाघों की संख्या का 80 प्रतिशत भारत में हैं।
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि बाघों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए मानक अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी समिति ने भारत में 14 बाघ अभयारण्यों को मान्यता दी है। एक ट्वीट में श्री यादव ने कहा कि विश्व के 70 प्रतिशत से अधिक बाघ भारत में हैं।
श्री यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बाघों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण को दिए गए प्रोत्साहन ने यह सुनिश्चित किया है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकी भी समृद्ध हो।
इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का खतरा बढ़ रहा है

बाघों के संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल के वन विभाग ने सुन्दर बन में 2020-21 की बाघ गणना के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
विश्व के सबसे बडे मैनग्रूव डेल्टा के लिए प्रसिद्ध सुन्दरबन को बंगाल टाइगर की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। राज्य की ओर से जारी आंकडों के अनुसार समूचे रिजर्व में 726 स्थानों पर स्थापित एक हज़ार तीन सौ सात कैमरा इकाइयों के जरिए एक साल में 96 बाघों की संख्या रिकार्ड की गई। इनमें 52 मादा बाघ और चार शावक शामिल हैं। चक्रवात अम्फन और यास के कारण निचले इलाकों में हुए भारी विनाश और जन सैलाब के बावजूद भी बाघों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अध्ययन बताता है कि बाघ सुन्दरबन क्षेत्र के पर्यावास में रच बस गए हैं। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए नुकसान और महामारी की वजह से अधिक लोग आजीविका के लिए वनों का रूख कर रहे हैं जिससे इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का खतरा बढ रहा है। सुन्दरबन में बाघों के संरक्षण के लिए और अधिक सतत दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।